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उत्तराखंड राज्य का इतिहास और जानकारी | Uttarakhand History Information

उत्तराखंड राज्य का इतिहास और जानकारी|Uttarakhand History Information

उत्तराखंड का इतिहास-
उत्तराखंड राज्य का वातावरण बहुत ही खास है। सालभर लोग इस राज्य की अलग अलग जगह को देखने के लिए आते रहते है। इस राज्य में कई सारे तीर्थस्थल भी है। और इसी वजह से भी इस राज्य को ‘देव भूमि’ नाम से भी जाना जाता है। कुछ ही साल पहले इस राज्य के नाम में भी बदलाव किया गया। कुछ लोग इस राज्य को ‘उत्तराखंड’ नाम से बुलाते है तो कुछ लोग इसे ‘उत्तरांचल’ नाम से जानते है।

उत्तरांचल का नाम केदारखंड, मानखंड और हिमवत जैसे पुराने हिन्दू ग्रंथ में भी पाया गया। यहापर कुषाण, कुदिन, कनिष्क, समुद्रगुप्त, पुरवास, कतुरी, पाल, चन्द्र, पवार और आखिरी में अंग्रेजो ने शासन किया था। इस स्थान पर बहुत सारे पवित्र तीर्थस्थल और मंदिर होने की वजह से भी इस स्थान को ‘देव भूमि’ कहा जाता है। इस पहाड़ी इलाके में पर्यटकों को देखने के लिए कई सारी जगह है।
यहापर कई सारे सुन्दर पर्यटन स्थल देखने को मिलते है और यहापर हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, उत्तरकाशी, गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे प्रसिद्ध और पवित्र तीर्थस्थल है। यह राज्य पश्चिम हिमालय में स्थित है।
बहुत साल पहले उत्तरांचल आगरा और अवध के संयुक्त प्रान्त का हिस्सा था और इसकी निर्मिती सन 1902 में हुई थी। लेकिन सन 1935 में इस राज्य का नाम छोटा कर दिया गया और इसे केवल संयुक्त प्रान्त कहा गया।
मगर सन 1950 में प्रान्त का नाम फिर से बदल दिया गया और इसे उत्तर प्रदेश नाम दिया गया और उत्तरांचल इसी का ही हिस्सा रहा। लेकिन 9 नवम्बर 2000 को उत्तरांचल को अलग करके राज्य का दर्जा दिया गया और इसकी वजह से भारत का 27 वा राज्य का निर्माण हुआ। और 1 जनवरी २००७ से राज्य का नाम “उत्तरांचल” से बदलकर “उत्तराखण्ड” कर दिया गया है।

उत्तराखंड के जिले – Districts of Uttarakhand

उत्तराखंड में कुल 14 जिले है। इसमें उत्तरकाशी, चमोली, रूद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, पिथोरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर, नैनीताल, उधम सिंह नगर, और हरिद्वार जिले आते है।

उत्तराखंड की नदिया – Rivers of Uttarakhand

गंगा, यमुना, भागीरथी, धौली गंगा, गिरथी गंगा, ऋषि गंगा, बाल गंगा, भिलंगना नदी, टोंस नदी, अलकनंदा, मन्दाकिनी, पिंदार और नंदाकिनी जैसी मुख्य नदिया है।
उत्तराखंड की संस्कृति – Culture of Uttarakhand
यहाँ के गढ़वाल प्रदेश में लंग्विर नृत्य, बरदा नाती लोकनृत्य, पांडव नृत्य, धुरंग, धुरिंग जैस नृत्य किये जाते है। यहाँ के कुमाऊ लोगो को संगीत, लोक नृत्य, और गाने बहुत पसंद है। यहाँ के लोग मुरली, बिना और हुरका का इस्तेमाल करके नृत्य करते है।

इस अनोखे हुरका का प्रदर्शन ‘जुर्किया’ द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में बाकी के लोग भी नाचते है और उन्हें हुर्कियारी कहा जाता है। यह हुर्कियारी अक्सर उनकी पत्नी या फिर लड़की होती है। वो एक जगह से दूसरी जगह पर नृत्य करते है और गाते समय देवी और देवता की प्रशंसा करते है।
फसल काटने के समय जब त्यौहार होते है तो लोग उस समय झारवा, चंधुर, छापलियर जैसे नृत्य करते है।

मालूशाही, बैर, और हुर्किया बोल जैसे लोक गीत गाते है। यहाँ के गढ़वाल प्रदेश में हत्कालिका मेला, टपकेश्वर मेला, सुरखंडा देवी मेला, कुंजापुरी मेला, लखवार गाव का मेला, माता मूर्ति का मेला मनाया जाता है। इसके अलावा यहाँ के कुमाऊ प्रदेश में उत्तरायनी मेला, श्रवण मेला(जागेश्वर), द्वाराहाट की कार्तिक पूर्णिमा, कसार देवी मेला और नंदा देवी मेला का भी आयोजन किया जाता है।


इस उत्तराखंड राज्य में चारो तरफ़ वातावरण काफी शांतिपूर्ण है। यहापर पेंटिंग्स और कला का तो भंडार भरा है। पत्थर की नक्काशी और लकड़ी की नक्काशी यहाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध है। लेकिन यहाँ की पत्थर की नक्काशी की कला धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर है मगर यहाँ की लकड़ी की नक्काशी की कला आज भी बड़े पैमाने पर देखने को मिलती है।
कुछ सालों पहले यहाँ के गढ़वाल के हर घर के दरवाजे पर नक्काशी देखने को मिलती थी। यहाँ के चांदपुर किला, श्रीनगर का मंदिर, पन्दुकेश्वर (बद्रिनाथ के पास) देवी मदनी (जोशीमठ के पास) देवलगढ़ मंदिर को देखने के बाद यहाँ के समृद्ध वास्तुकला का दर्शन होता है।

यह जगह पर्यटन के लिए बिलकुल सही जगह है क्यों की यहापर नदी में राफ्टिंग करना, ट्रेकिंग, पहाड़ो पर चढ़ना, फिशिंग, पहाड़ो पर बाइक चलाना, माउंटेन सफारी, स्कीइंग, पैराग्लाइडिंग की सुविधा उपलब्ध है। इस राज्य के लोग को स्वभाव काफी अच्छा है, यहापर सभी तरफ़ कुदरती सुन्दरता को करीब से देखने का मौका मिलता है।

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