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श्री कण्डोलिया ठाकुर मंदिर पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड | Kandoliya thakur mandir pauri, uttarakhand

श्री कण्डोलिया ठाकुर मंदिर पौड़ी, उत्तराखंड

श्री कण्डोलिया ठाकुर जी का मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित है। यह पौड़ी शहर से 2 किलोमीटर की दूरी में ऊंचाई में स्थित एक टीले पर बना हुआ है, इसके चारों तरफ जंगल ही जंगल है, और मंदिर के आगे से बहुत ही सुंदर एक पार्क भी है। जंहा पर्यटक लोग आते जाते रहते है, और ऊपर कुछ दूर पर एक बहुत बड़ा क्रिकेट स्टेडियम भी है।




श्री कंडोलिया ठाकुर जी का मंदिर बहुत ही सुंदर,धार्मिक, प्राचीन और बहुत ही मान्यताओं वाला मंदिर है, इसके चारों तरफ बहुत ही सुंदर मनमोहक दृश्य है।
श्री कंडोलिया मंदिर में हर साल बहुत सारे भक्त लोग यहाँ पर दर्शन करने के लिए आते है।




श्री कंडोलिया ठाकुर जी के मंदिर में कंडोलिया भगवान कुमाऊँ के गोल्ज्यू देवता है, जो कि पौड़ी में कंडोलिया ठाकुर जी के रूप में पूजे जाते है, इसके पीछे भी एक कहानी हैं।




कंडोलिया ठाकुर देवता चम्पावत क्षेत्र के डुंगरियाल नेगी जाति के लोगो के ईष्ट देवता गोरिल देवता है जो कि गोल्ज्यू देवता भी कहलाते है।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बहुत वर्ष पूर्व कुमाऊँ की एक  युवती का विवाह पौड़ी गढ़वाल के एक गाँव के डुंगरियाल नेगी जाति के एक युवक से हुआ था। विवाह होने के बाद वह युवती अपने ईस्ट देवता गोल्ज्यू देवता को एक कंडी में रखकर साथ लेके आयी थी।

इसके बाद कुमाऊँ के ईस्ट देव गोल्ज्यू देवता को पौड़ी में श्री कंडोलिया ठाकुर जी के नाम से पूजा जाने लगा और वह युवती अपने ईस्ट देव को कंडी में लाये जाने के कारण ही इनका नाम कंडोलिया ठाकुर रखा गया।

मान्यता है कि कुछ समय बाद कंडोलिया देवता गाँव के किसी व्यक्ति के स्वप्न में आकर कहा कि मेरा स्थान किसी उच्च स्थान पर होना चाहिए। ततपश्चात श्री कंडोलिया ठाकुर देवता को पौड़ी शहर से ऊपर एक पहाड़ के टीले में स्थापित कर दिया गया। स्थापना के बाद से ही श्री कंडोलिया ठाकुर जी न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध हो गए और पूजे जाने लगे।

हर साल यहां तीन दिवसीय पूजा-अर्चना होती है । इस तीन दिवसीय आयोजन में यहां सैकडों श्रद्धालु मन्नत मांगने आते हैं , तो कई मन्नत पूर्ण होने पर घंटा , छत्र आदि चढाते हैं ।


कंडोलिया मंदिर के बारे में कहा जाता है कि डुंगरियाल नेगी जाति के पूर्वजों ने गोरिल देवता से इस स्थान पर निवास करने का अनुरोध किया था , जिन्हे वे अपने साथ पौड़ी गांव लाये थे। पौड़ी गांव के लोग अपनी वृद्धावस्था के कारण अपने ईष्टदेव को “कण्डी” में लाये थे । 

पहले उन्होने अपने ईष्टदेव की स्थापना पौड़ी गांव के पंचायती चौक में की थी लेकिन यह स्थान गहराई में होने के कारण “गोरिल देवता” ने स्वयं को शिखर पर स्थापित करने को कहा इसके बाद पौड़ी नगर के शीर्ष शिखर पर ईष्ट देवता की स्थापना की गई एवम् स्थानीय क्षेत्रपाल के रूप में देवता की पूजा की जाने लगी ।

यह कहा जाता है कि पौड़ी गाँव के ईष्ट देवता को इस स्थान पर कण्डी में लाया गया था अत: इसलिए पौड़ी गांव के ईष्ट देवता को “कन्डोलिया देवता” के नाम से जाना जाने लगा । कुछ समय के पश्चात आसपास का क्षेत्र भी “कण्डोलिया” के नाम से पहचाना जाने लगा । स्थानीय जन समाज में कंडोलिया देवता को बोलन्दा देवता के रूप में पूजा की जाती है | सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जब भी कंडोलिया देवता को किसी घटना या विपत्ति का एहसास होता है , तो कंडोलिया देवता सारे नगर में आवाज़ लगाकर नगरवासियों को सावधान कर देते है |


श्री कंडोलिया ठाकुर जी की जय।

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