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उत्तराखंड की संस्कृति का इतिहास | Uttarakhand ki sanskirti ka itihaas kya hai?

उत्तराखंड की संस्कृति का इतिहास क्या है?

उत्तराखंड की संस्कृति का इतिहास बहुत ही अनोखा और सुंदर है, इस राज्य के मौसम और जलवायु के अनुरूप ही है। उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है और इसलिए यहाँ ठण्ड बहुत होती है। इसी ठण्डी जलवायु के आसपास ही उत्तराखंड की संस्कृति के सभी पहलू जैसे रहन-सहन, वेशभूषा, लोक कलाएँ इत्यादि घूमते हैं।


उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है। यहाँ ठण्ड बहुत होती है इसलिए यहाँ लोगों के मकान पक्के होते हैं। दीवारें पत्थरों की होती है। पुराने घरों के ऊपर से पत्थर बिछाए जाते हैं। वर्तमान में लोग सीमेन्ट का उपयोग करने लग गए है। अधिकतर घरों में रात को रोटी तथा दिन में भात (चावल) खाने का प्रचलन है। लगभग हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है।


त्योहार के बहाने अधिकतर घरों में समय-समय पर पकवान बनते हैं। स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली गहत, रैंस, भट्ट आदि दालों का प्रयोग होता है। प्राचीन समय में मण्डुवा व झुंगोरा स्थानीय मोटा अनाज होता था। अब इनका उत्पादन बहुत कम होता है। अब लोग बाजार से गेहूं व चावल खरीदते हैं। कृषि के साथ पशुपालन लगभग सभी घरों में होता है। घर में उत्पादित अनाज कुछ ही महीनों के लिए पर्याप्त होता है। कस्बों के समीप के लोग दूध का व्यवसाय भी करते हैं। 


पहाड़ के लोग बहुत परिश्रमी होते है। पहाड़ों को काट-काटकर सीढ़ीदार खेत बनाने का काम इनके परिश्रम को प्रदर्शित भी करता है। पहाड़ में अधिकतर श्रमिक भी पढ़े-लिखे है, चाहे कम ही पढ़े हों। इस कारण इस राज्य की साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।
शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में पूरे वर्षभर उत्सव मनाए जाते हैं। भारत के प्रमुख उत्सवों जैसे दीपावली, होली, दशहरा इत्यादि के अतिरिक्त यहाँ के कुछ स्थानीय त्योहार हैं।


उत्तराखण्ड की मुख्य भाषा हिन्दी है। यहाँ अधिकतर सरकारी कामकाज हिन्दी में होता है। नगरीय क्षेत्रों में हिन्दी बोली जाती है। कुमाऊँ मण्डल के ग्रामीण अंचलों में कुमाऊँनी तथा गढ़वाल मण्डल के ग्रामीण क्षेत्रों में गढ़वाली बोली जाती है। कुमाऊँनी तथा गढ़वाली भाषा को लिखने के लिए देवनागरी लिपि को प्रयुक्त किया जाता है। गढ़वाल के जौनसार भाभर क्षेत्र में जो भाषा बोली जाती है उसे जौनसारी बोली/भाषा कहा जाता है।


मेले - देवीधुरा मेला (चम्पावत)  पूर्णागिरि मेला (चम्पावत)  नंदा देवी मेला (अल्मोड़ा)  उत्तरायणी मेला (बागेश्वर)  गौचर मेला (चमोली)  वैशाखी (उत्तरकाशी)  माघ मेला (उत्तरकाशी)  विशु मेला (जौनसार बावर)  गंगा दशहरा (नौला, अल्मोड़ा)  नंदा देवी राज जात यात्रा जो हर बारहवें वर्ष होती हैऐतिहासिक सोमनाथ मेला (माँसी, अल्मोड़ा)

संक्रान्तियाँं
फूलसंंक्राॅन्ति यानि फूलदेई (कुमांऊँ, गढ़वाल)  हरेला (कुमाऊँ)  उत्तायणी की संक्रॉन्ति यानि घुघुतिया (कुमांऊँ)  घीं संक्रॉन्ति (कुमांऊँ व गढ़वाल )


जय उत्तराखंडी।

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