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उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3235 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर देवी यमुना जी को समर्पित मंदिर है।

यमुनोत्री मंदिर
उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर छोटे चार धामों में से एक धाम है, यमुनोत्री धाम से यमुना नदी का उद्गम स्थल मात्र एक किमी की दूरी पर है।
यहां पर बंदरपूंछ नामक चोटी (6315 मी) के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है, गढ़वाल हिमालय की पश्चिम दिशा में उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। तीर्थ स्थल से एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊँचाई पर स्थित है। 
दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने से वंचित रह जाते हैं।


यमुनोत्री मंदिर के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीया को खोले जाते है, और कार्तिक माह की यम द्वितीया को बंद कर दिए जाते हैं। यमुनोत्री मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन 1885 ईस्वी में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है।

भूगर्भ से उत्पन्न 90 डिग्री तक गर्म पानी के जल का कुंड सूर्य-कुंड और पास ही ठन्डे पानी का कुंड गौरी कुंड यहाँ सबसे उल्लेखनीय स्थल हैं।

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर का मनमोहक दृश्य

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर के प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर परिशर 3235 मी. उँचाई पर स्थित है। यँहा पर मई से अक्टूबर तक श्रद्धालुओं का अपार समूह हरवक्त देखा जाता है। शीतकाल में यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है। मोटर मार्ग का अंतिम विदुं हनुमान चट्टी है जिसकी ऋषिकेश से कुल दूरी 200 कि. मी. के आसपास है। हनुमान चट्टी से मंदिर तक 14 कि. मी. पैदल ही चलना होता था किन्तु अब हलके वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुँचा जा सकता है जहाँ से मंदिर मात्र 5 कि. मी. दूर रह जाता है।


अत्यधिक संकरी-पतली युमना काजल हिम शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। पौराणिक आख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। देवी यमुना के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है। 

यमुना नदी
मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी नंग-धडंग बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरितिमा मन को मोहने से नहीं चूकती है। सड़क मार्ग से यात्रा करने पर तीर्थयात्रियों को ऋषिकेश से सड़क द्वारा फूलचट्टी तक 220 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यहां से 8 किमी की चढ़ाई पैदल चल कर अथवा टट्टुओं पर सवार होकर तय करनी पड़ती है। यहां से तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए किराए पर पालकी तथा कुली भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं।

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर का इतिहास

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर की जगह एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनी का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी (बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से 251किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से 131किलोमीटर पश्चिम -उत्तर में 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से 5 मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है। यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए "ओम् सदृश "ध्वनि के साथ नि:स्तरण है।
तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है, 
वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुना जी का मन्दिर है।
वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।(यमुनोत्तरी का मार्ग) हनुमान चट्टी (2400मीटर) यमुनोत्तरी तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है।

इसके बाद नारद चट्टी, फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है, इन चट्टीयों में महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है,क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं, कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है।
1946 में एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव में यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी, और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।यहीं गाँव में नारायण भगवान का मन्दिर है।
पैदल यात्रा पथ के समय गंगोत्री से हर्षिल होते हुए एक छाया पथ भी यमुनोत्तरी आता था यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी की स्थिति है, जहाँ भैंरो का मन्दिर है।

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर में माँ यमुना जी की महिमा गुणगान

यमुनोत्री धाम महिमा पुराणों के अनुसार-


सर्वलोकस्य जननी देवी त्वं पापनाशिनी। आवाहयामि यमुने त्वं श्रीकृष्ण भामिनी।।

तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना तत्र निस्रता सर्व पाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम |

अर्थात (जहाँ से यमुना नदी निकली है वहां स्नान करने और वहां का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!)

उत्तराखंड का यमुनोत्री धाम मंदिर की कहानी

उत्तराखंड के यमुनोत्री धाम मंदिर की कहानी कुछ इस प्रकार है कहा जाता है कि महर्षि असित का आश्रम इसी स्थान पर था। वे नित्य स्नान करने गंगा जी जाते थे और यही निवास करते थे। वृद्धावस्था में उनके लिए दुर्गम पर्वतीय मार्ग नित्य पार करना कठिन हो गया। 

तब माँ गंगा जी ने प्रकट होकर अपना एक छोटा सा झरना ऋषि असित के आश्रम के पास प्रकट कर दिया वह उज्जवल जटा का झरना आज भी वहा है और वहीं यमुनोत्री धाम मंदिर बना। हिमालय में गंगा और यमुना की धाराएं एक हो गई होती यदि मध्य में दंड पर्वत न आ जाता देहरादून के समीप ही दोनो धाराएं बहुत पास आ जाती है।

एक और अन्य कथा के अनुसार सूर्यतनया का शाब्दिक अर्थ है सूर्य की पुत्री अर्थात् यमुना। पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। सूर्य की छाया और संज्ञा नामक दो पत्नियों से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। भ्रातृ द्वितीया (भैयादूज | भाई दूज) पर यमुना के दर्शन और मथुरा में स्नान करने का विशेष महात्म्य है। 

यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी है। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है।

प्रयागकूले यमुनातटे वा सरस्वती पुण्यजले गुहायाम्। यो योगिनां ध्यान गतोsपि सूक्ष्म तस्मै नम:।।

कहा गया है-जो व्यक्ति यमुनोत्तरी धाम आकर यमुनाजी के पवित्र जल में स्नान करते हैं तथा यमुनोत्तरी के सान्निध्य खरसाली में शनिदेव का दर्शन करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यमुनोत्तरी में सूर्यकुंड, दिव्यशिला और विष्णुकुंड के स्पर्श और दर्शन मात्र से लोग समस्त पापों से मुक्त होकर परमपद को प्राप्त हो जाते हैं।

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