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उत्तराखंड के गढ़वाली लोग का इतिहास क्या है?

उत्तराखंड के गढ़वाली लोग का इतिहास क्या है?

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में बताने जा रहे है कि उत्तराखंड के गढ़वाली लोग का इतिहास क्या है?


उत्तराखंड भारत देश का एक प्रदेश है, उत्तराखंड में दो मंडल है, कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल आज हम उत्तराखंड के गढ़वाली लोग का इतिहास के बारे में जानेंगे।
उत्तराखण्ड का इतिहास पौराणिक है। उत्तराखण्ड का शाब्दिक अर्थ उत्तरी भू भाग का रूपान्तर है, इस नाम का उल्लेख प्रारम्भिक हिन्दू ग्रन्थों में मिलता है , जहाँ पर केदारखण्ड ( वर्तमान गढ़वाल ) और मानसखण्ड ( वर्तमान कुमांऊँ ) के रूप में इसका उल्लेख है। उत्तराखण्ड प्राचीन पौराणिक शब्द भी है जो हिमालय के मध्य फैलाव के लिए प्रयुक्त किया जाता था। उत्तराखण्ड " देवभूमि " के नाम से भी जाना जाता है तथा यहाँ अनेक जातियों का राज्य रहा जैसे पौरव , कुशान , गुप्त , कत्यूरी , रायक , पाल , चन्द , परमार व पयाल राजवंश आदि ।

उत्तराखंड के हिमालय का इतिहास तो बहुत ही पुराना है, और हमारे पौराणों में भी उत्तरी हिमालय के अनेक जातियों के प्रमाण मिलते है, उत्तरी हिमालय में सिद्ध, गन्धर्व, यक्ष और किंनर जाति आदि। और इन जाति के राजा कुबेर को कहा जाता था। कहा जाता है कि वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नी अरुंधति के साथ हिमदाव पर्वत पे चले गए थे। जंहा वो किरात लोगों के साथ बहुत लम्बे समय तक रहे। 

अतः इससे ये पता चलता है कि उत्तरी हिमालय में किरात लोग रहते थे। क्योंकि हिमदाव जिसे हिरदाव भी कहते है वह टिहरी गढ़वाल में एक पट्टी का नाम है, वहां विसों नाम का विशाल पर्वत है जंहा गुरू वशिष्ठ मुनि की गुफा और कुण्ड है।
और इस बात का प्रमाण हमे केदारखंड के अध्याय 206 से मिलता है, जिसके पहले सात श्लोकों में इन बातो का वर्णन मिलता है।

बहुत हज़ार साल पहले चले तो महाभारत वनपर्व के अध्याय 36 में लिखा है कि अर्जुन एक शुकर के पीछे तीर धनुष लेके उनका शिकार करने के लिए दौड़ रहे थे। उस समय किरात रूप में भगवान शंकर ने अर्जुन से युद्ध किया था। किरात रूप में भगवान शंकर ने अर्जुन से उस जगह में युद्ध किया था जो श्रीनगर गढ़वाल से 6 मील नीचे अलकनंदा नदी के बामकूल पर बद्रीनाथ लाइन में एक चट्टी है, जिसका नाम विल्लवकेदार है। 

महाभारत वनपर्व के अध्याय 140 में लिखा है कि जब पांडव गन्दमादन पर्वत की ओर गए थे तो मार्ग में हिमालय के निकट राजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर में अतिथि के रूप में रुके थे। 

कहाँ है गंधमादन पर्वत ?

हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की । यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था । सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदँत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था । आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है । पुराणों में जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है , जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

बाराही संहिता के अध्याय 14 में हिमालय में रहने वाली जातियों का वर्णन वराह मिहराचर्या ने किया है, और मिस्टर हीलर का कथन है कि नागा ( नाग ) जाति हज़ारों साल पहले अलकनंदा घाटी के किनारे निवास करती थी। और खस जाति के लोगों को कुमायूं भी कहते थे कुमायूं के प्रथम खसिया राजा केन्त्युरा वंश के थे।


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