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उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल की झीलें व ताल

उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल की झीलें व ताल


नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल की झीलें व ताल के बारे में बतायेंगे।



गढ़वाल की झीलें व ताल- 

1. छिपला केदारताल-

छिपला केदारताल समुद्र तल से 4,724.4 मीटर की ऊँचाई पर है। यहाँ छोटी - बड़ी 12 झीलें हैं। इन झीलों का जल स्वच्छ है। इनमें छिपला केदार, ब्रह्म, पटोद, काकटोल तथा मोताड़ झील प्रमुख हैं। 

2. झिलमिल ताल- 

झिलमिल ताल लगभग 2 किमी की परिधि में गोलाकार यह ताल साल, बाँज, बुराँस और देवदार के सघन वृक्षों से घिरा है। टनकपुर ब्रह्मदेव से यह लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका जल नीला है। 

3. तड़ागताल- 

यह अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। एक किलोमीटर लम्बा तथा आधा किलोमीटर चौड़ा यह ताल चीड़, देवदार, बाँज और बुरांस के वृक्षों से घिरा है। ग्रीष्मकाल में इसका कुछ हिस्सा सूख जाता है, जिसमें खेती भी की जाती है। इस ताल के निचले भाग से पानी की निकासी के लिए सुरंगें बनी हैं। 

4. मंसूरताल- 

टिहरी जनपद की सीमा ( घुत्तू ) से खतलिंग ग्लेशियर के ठीक सामने भिलंगना नदी की सहायक हिमनद दूधगंगा का उद्गम मंसूरताल 5,029.2 मीटर की ऊँचाई पर 3 किमी परिधि में फैला सुरम्य ताल है। कई पर्यटकों को यहाँ राजहंस देखने को मिले हैं। इसी ताल के पूर्वी छोर से आगे उतराई पर केदारनाथ का ट्रैकिंग रास्ता है।

5. बेनीताल-

बेनीताल कर्णप्रयाग और सिमली से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह लगभग 300 मी लम्बा और 160 मी चौड़ा है। लगभग 3000 मी को ऊंचाई पर स्थित बेनीताल बांज, बुराँस, चीड़ और काफल आदि वृक्षों के अलावा मनोरम पहाड़ियों से घिरा हुआ है। 

6. विरहीताल-

जनपद चमोली में भीमताल से आगे दाहिनी ओर प्रसिद्ध विरहीताल ( गौना झील ) है। यह कभी बहुत बड़ी झील थी और ब्रिटिश काल में यहां नावें चलती थीं, लेकिन अब यह झील सूख गई है। 

7. सरताल-

उत्तरकाशी की बड़कोट तहसील में स्थित सरताल 5,500 मी की ऊंचाई पर लगभग 900 मी की परिधि में फैला हुआ है। राजगढ़ी से लगभग 40 किमी पैदल यात्रा घने जंगलों से तय करने के उपरान्त सरताल के दर्शन होते हैं। इनके अलावा टिहरी में भिलंग ताल, चौराबाड़ी ताल ( केदारनाथ ), चमोली में गुड्यार ताल, गोहना ताल, उत्तरकाशी में रोहिसाड़ा, भराड़सर ताल, खिड़ाताल, काकभुशुण्डी ताल, लामाताल, देवसाड़ी ताल, मासरताल तथा फाचकण्डी बयाँ झील प्रमुख हैं। 

8. आछरी या अप्सरा ताल- 

समुद्र तल से 4,419.6 मीटर की ऊंचाई पर दो पर्वत श्रेणियों के मध्य दो - तीन फर्लांग पर सुन्दर आछरी ताल है। इस ताल के चारों तरफ पुष्प घाटी है। ताल में हिमाच्छादित दोनों पर्वतों की छाया इस ताल के निर्मल जल में आकर्षण उत्पन्न करती है। लोक कहानियों के अनुसार, इस ताल में अप्सराएँ स्नान करने के लिए आती थीं तथा इसके सुन्दर पुष्पित वातावरण में निवास करती थी। यहां पहुंचने के लिए उत्तरकाशी से रास्ता जाता है।

9. लिंगाताल- 

आछरी या अप्सरा ताल के समीप 5,000 मीटर की ऊंचाई पर कुरली की धार और इसके सामने कटार के आकार की हिमाच्छादित दुपदा कटार है। इनके मध्य मातृका ताल और इस ताल से एक फलांग की दूरी पर भव्य लिंगाल स्थित है। इस ताल के मध्य में सुन्दर स्लेटों से सजा एक टापू है। लिंग के रूप में सूर्य की रोशनी में इसकी सुन्दरता अवर्णनीय है। बूढ़ा केदार से लगभग 37 किमी की दूरी पर यह ताल स्थित। 

10. मातृका ताल- 

लिंगाताल से उत्तर की ओर शिलाखण्डों को पार कर मातृका ताल के दर्शन होते हैं। इसे देवियों का या मातृ शक्ति का ताल भी कहा जाता है। बूढ़ा केदार से 38 किमी की दूरी पर स्थित यह ताल चार फर्लांग के लगभग फैला हुआ है। 

11. नरसिंह ताल-

मातृका ताल से आगे नरसिंह ताल है, जो मातृका और लिंगताल से छोटा है। बूढ़ा स्थित है। बूढ़ा केदार से 39 किमी की दूरी पर यह ताल स्थित हैं। 

12. सिद्धताल-

नरसिंह ताल से 20 किमी की ऊँचाई चढ़ने पर इस ताल के दर्शन होते हैं। इस ताल की तलहटी पर पत्थर की स्लेटें हैं। उन स्लेटों से स्वाभाविक रूप से एक पुरुष मूर्ति का आभास होता है। 

13. यमताल- 

सिद्धताल से आगे सदैव हिम से ढका यमताल है। यहाँ बर्फ जमी रहती है, जिसके ऊपर बहुत सावधानी से चलना पड़ता है। इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं पर पैर बर्फ की कमजोर सतह पर न पड़ जाए। यदि असावधानी से ऐसा हो गया, तो व्यक्ति का जीवित रहना असम्भव है।

14. महासरताल- 

इसकी ऊंचाई 1672 मीटर है। सहस्रताल जाते समय महासरताल रास्ते में पड़ता है। यहाँ कटोरेनुमा दो ताल हैं, जो भाई - बहनो के ताल कहे जाते हैं। चारों ओर घने वृक्ष और बुग्याल इसकी शोभा बढा़ते हैं। यहाँ पर्वो पर स्थानीय लोग तैराकी प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं। 

15. सहस्रताल- 

यह ताल गढ़वाल के तालों में सबसे बड़ा एवं गहरा हैं। 4,572 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस ताल में प्रकृति के अद्भुत रूप के दर्शन होते है। इसके पूर्वी किनारे पर द्रुपदा की कटार है, जिससे हिम बर्फ गलकर इस ताल में आती रहती है। सिद्धताल, नरसिंह ताल और लिंगताल से निकलने वाली पिलंग गंगा का पानी सहस्रताल के उत्तरी छोर से पानी की धारा के रूप में प्रारम्भ होता है। इस ताल के दक्षिण - पश्चिम में विशाल शिलाएँ और उत्तरी छोर पर फूलों से आच्छादित समतल भूमि है। इस ताल की तलहटी में भी करोड़ों देवताओं के बैठने के लिए करोड़ों चौकियों बिछी है स्वच्छ जल होने के कारण स्लेट से बनी ये चौकियौं देखी जा सकती हैं। इससे कुछ दूरी पर एक और सहस्रताल है, जिससे भिलंगना नदी निकलती है। घुत्तू से गंगी कल्याणी होकर तथा बूढ़ा केदार से लगभग 40 किमी की दूरी है, परन्तु यहाँ ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है। 

16. गाँधी सरोवर ( शुरवदी ताल )-

इस ताल में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की अस्थियों का विसर्जन किया गया था। अतः इसे गाँधी ताल के नाम से पुकारा जाता है। इस ताल को चौराबाड़ी ताल भी कहा जाता है। केदारनाथ की पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी में यह ताल स्थित है, इसलिए इसका मार्ग केदारनाथ से होकर ही जाता है।

17. होमकुण्ड- 

रूपकुण्ड से दस मील आगे 4,061 मी की ऊंचाई पर नन्दा राजजात का अन्तिम पड़ाव है। सुन्दरताल के किनारे एक चबूतरा है। कहा जाता है कि यहीं नन्दा का डोला रखा गया था। इसी स्थान से चार सींगों वाला मेढ़ा ( खाडू ) अकेला जात यात्रा में आगे जाता है। राजयात्रा प्रत्येक बारह वर्ष के पश्चात् आयोजित की जाती है। 

18. डोडीताल- 

उत्तरकाशी में गंगोत्री से डोडीताल का रास्ता जाता है। छ : कोनों वाला ताल लगभग 3,307 मी की ऊँचाई पर स्थित है। चारों ओर रई, गुरैडा और भोजपत्र के सुन्दर वृक्ष तथा स्वच्छ नीलिमा लिए हुए वन विभाग द्वारा पाली गई मछलियों की जल क्रीड़ा, दक्षिण किनारे पर शिव मन्दिर, वन विभाग का विश्राम गृह तथा ताल के पूर्वी भाग में सुन्दर पर्वत शृंखला डोडीताल के सौन्दर्य को बढ़ा देते हैं। उत्तरकाशी से 7 किमी कल्याणी तक मोटर मार्ग है । इस ताल में ट्राउट मछलियाँ पाई जाती है।

19. रूपकुण्ड- 

चमोली जिले के नन्दा राजजात यात्रा मार्ग में ज्योरागली घाटी में 5,200 मी की ऊँचाई पर गोलाकार कुण्ड है। प्राचीन कथा के अनुसार, शिव - पार्वती ने कैलाश जाते हुए इस कुण्ड का निर्माण किया। कुण्ड के निर्मल जल में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर माँ पार्वती स्वयं के रूप पर ही विमुग्ध हो गई थीं और अपने सौन्दर्य का आधा भाग वहीं छोड़ गई। माँ पार्वती के रूप से ही यह कुण्ड रूपवान है। मानो प्रकृति ने अपने अन्तर्मन का सम्पूर्ण सौन्दर्य यही बिखेर दिया हो, रूपकुण्ड को देखकर ऐसा ही प्रतीत होता है। रूपकुण्ड की परिधि 150 मी , व्यास 45 मी और विस्तार 2,000 वर्ग मी है। कुण्ड के पश्चिमी तट पर 25 मी और उत्तर - पूर्वी तट पर 100 मी की गहराई है। यह कुण्ड प्रायः वर्षभर बर्फ से ढका रहता है। लोहाजंग से लगभग 39 किमी की दूरी पर यह स्थल है। यहाँ रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है।

20. देवरिया या देवहरिया ताल- 

जिला रुद्रप्रयाग में ऊखीमठ के सारी गाँव से 3 किमी दूर 3,220 मी की ऊंचाई पर यह ताल स्थित है। लगभग एक मील लम्बा, आधा मील चौड़ा यह ताल प्रकृति की सुन्दर रचना है, देवरिया ताल को देखने पर ऐसा ही प्रतीत होता है। चौखम्बा की हिमाच्छादित पर्वत श्रेणी मानो अपनी ही सुन्दरता को इस दर्पण रूपी ताल में निहारती हो। 

21. बासुकि ताल-

केदार धाम के पश्चिम में 4 किमी की पैदल यात्रा कर इस ताल तक पहुँचा जा सकता है। इस ताल में कमल और विशेष रूप से नील कमलों की शोभा देखते ही बनती है। हिम शृंखलाओं का प्रतिबिम्ब ताल के सौन्दर्य को द्विगुणित कर देता है। इस ताल में रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है। समुद्र तल से 4,135 मी की ऊँचाई पर स्थित यह ताल साहसिक पर्यटन को दृष्टि से उत्तम है। 

22. हेमकुण्ड लोकपाल-

इस कुण्ड के किनारे पर ही सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह ने तपस्या की। यहां पर लक्ष्मणजी का मन्दिर है तथा एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा भी है। यह ताल 4,829 मी की ऊंचाई पर स्थित है। 

23. सतोपंथ ताल-

बद्रीनाथ से उत्तर - पश्चिम की ओर 27 किमी की दूरी पर माना, वसुधारा होकर इस ताल तक पहुंचा जा सकता है। यह ताल 4,402 मी की ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल के तीन कोण हैं। कहा जाता है कि इसके तीनों कोणों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने तपस्या की थी। दो मील की परिधि में यह ताल फैला हुआ है। इसी के पास सूर्यकुण्ड और चन्द्रकुण्ड नाम के दो ताल है।

24. भेंकलताल- 

रुद्रप्रयाग के बधाण के पास स्थित इस ताल का आकार अण्डाकार है। 

25. वेणीताल- 

आदिबद्री से तीन मील की दूरी पर चार फर्लांग में फैला हिमाच्छादित पर्वतों की छाया से शोभायमान घने वृक्षों के मध्य यह सुन्दर ताल स्थित है। यहाँ पर गैरसैण खेती से भी जाया जा सकता है। 

26. नचिकेता ताल- 

उत्तरकाशी जिले में लम्बगाँव - उत्तरकाशी मार्ग पर यह तालाब स्थित है। पहुँचने में सुगम होने के कारण यहाँ पर्यटक काफी मात्रा में आते हैं, जिसके कारण यहाँ का मार्ग थोड़ा - सा प्रदूषित भी हो गया है। पर्यटन की दृष्टि से इस ताल का विशेष महत्त्व है, अत : मार्ग की देखभाल तथा यात्रियों के आवागमन के कारण होने वाली गन्दगी की रोकथाम के लिए विशेष प्रबन्ध की आवश्यकता है। 

27. खिड़ाताल- 

उत्तरकाशी जिले के हुरी गाँव में स्थित खिड़ाताल झील का जल अत्यन्त स्वच्छ है। 

28. काणाताल- 

डोडीताल से थोड़ा आगे यह ताल है। इसमें सदा जल नहीं रहता है इसलिए इसे काणा ( अन्धा ) ताल कहा जाता है।

29. केदारताल- 

गंगोत्री से 18 किमी दूर केदारताल स्थित है। स्थानीय गाइड की आवश्यकता यहीं पहुँचने के लिए अति आवश्यक है। थलैयासागर की विशाल पर्वत श्रृंखला इस ताल की सुन्दरता को और भी बढ़ाती है। यह स्थान समुद्र तल से 4,425 मी की ऊंचाई पर स्थित है। थलैयासागर, जोगिन, भृगुपन्थ के अन्य शिखरों पर आरोहण के लिए आधार शिविर यही लगाए जाते हैं।





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