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पंचप्रयाग उत्तराखंड की कहानी

पंचप्रयाग उत्तराखंड की कहानी


नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के पंचप्रयाग के बारे में बताएंगे।



उत्तराखंड के पंचप्रयाग-

1. देवप्रयाग
2. कर्णप्रयाग
3. रुद्रप्रयाग
4. नन्दप्रयाग
5. विष्णुप्रयाग

1. देवप्रयाग-

देवप्रयाग यह स्थान है, जहाँ पर अलकनन्दा का भागीरथी नदी से मिलन होता है। यह दोनों पावन नदियों के संगम है। देवप्रयाग में दोनों नदियां मिलकर गंगा नाम से जानी जाती है। उत्तराखण्ड के पंचप्रयागों में से एक देवप्रयाग भी है। देवप्रयाग को देव शर्मा नाम के एक तपस्वी ने बसाया था। यहाँ स्थित रघुनाथ मन्दिर का पौराणिक महत्व है। 



संगम से सीढ़ियों से चढ़कर रघुनाथ मन्दिर आता है। यह मन्दिर द्रविड़ शैली से निर्मित है। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है किंवदन्ती है कि जल प्रलय के समय भगवान सुदर्शन पर्वत पर ही अवस्थित रहे थे। देवप्रयाग समुद्र तल से लगभग 1,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहीं सिद्धपीठ चन्द्रबदनी स्थित है, जहाँ चैत्र और आश्विन में नवरात्र के समय पूजा - अर्चना का विशेष महत्त्व है।

2. कर्णप्रयाग-



1894 ई. की विरही की बाढ़ ने प्राचीन कर्णप्रयाग को बहा दिया था। कर्ण ने यहाँ सूर्य भगवान की तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा है। अलकनन्दा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्ण देव का एक मन्दिर है। 

3. रुद्रप्रयाग-



ऋषिकेश से 139 किलोमीटर की दूरी पर रुद्रप्रयाग स्थित है। केदारखण्ड पुराण में कोल पर्वत से लेकर मन्दाकिनी अलकनन्दा नदी के संगम तक के क्षेत्र को रुद्र क्षेत्र कहा गया है। बद्रीनाथ मार्ग पर होने के कारण इस क्षेत्र का विकास हुआ और अनेक गाँव विकसित हो गए। 1854 ई. में स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा 1890 ई. में स्वामी विवेकानन्द ने भी यहाँ की यात्रा की थी।

4. नन्दप्रयाग-



नन्दप्रयाग समुद्र तल से 2,806 फीट की ऊंचाई पर दशोली परगने की तल्ली दशोला पट्टी में अलकनन्दा और नन्दाकिनी नदियों के संगम पर है। 1803-04 ई. में गढ़वाल में विनाशकारी भूकम्प और उसके बाद बाढ़ आई, जिसने नन्दप्रयाग के मूल रूप को बदल दिया था। 1894 ई. में विरही गंगा में बाढ़ से पहले मन्दिर और बाजार संगम स्थल पर ही थे। प्राचीन समय में इस स्थान पर सुहागा का व्यापार तङ्गण नाम की जाति के लोग किया करते थे। ये लोग तिब्बत के निवासी थे। टंगषी नाम की एक पट्टी जोशीमठ के पास आज भी है कुमाऊँ की ओर जाने का मार्ग भी यही से है। 

5. विष्णुप्रयाग-


जोशीमठ से बद्रीनाथ मार्ग पर विष्णुप्रयाग तीर्थ है। विष्णुप्रयाग 1,372 मीटर की ऊँचाई पर धौली और विष्णुगंगा के संगम पर स्थित है। हिमालयन गजेटियर में इसके विषय में लिखा गया है कि विष्णुप्रयाग पाँच प्रयागों में से एक तथा यात्रा मार्ग पर एक चट्टी है। इसके आसपास अत्यधिक बीहड़ तथा ऊबड़ - खाबड़ दृश्य है। पहाड़ नंगे और चट्टानी है तथा संगम पर धौली की जलराशि विष्णुगंगा की तुलना में इतनी ज्यादा है कि यह काफी दूर तक विष्णुगंगा के जल से अलग ही चलती रहती है। यहाँ चट्टान काटकर सीढ़ियां बनाई गई है। ' महाभारत ' के अनुसार, विष्णुप्रयाग से ऊपर गन्धमादन क्षेत्र में अत्यन्त सुरम्य और सरोवर स्थल हैं।

उत्तराखंड में पंचप्रयागों के अलावा एक और प्रयाग भी है जो कि लोगों की नजर में विलुप्त हो चुका है और इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। परंतु यह प्रयाग आज भी है और इस प्रयाग का नाम केशवप्रयाग हैं।

केशवप्रयाग- केशवप्रयाग चमोली जिले के माना गाँव के पास में बहती हुई दो नदियों का संगम है। यह दोनों नदियां क्रमशः सरस्वती नदी और अलकनंदा नदी है, अलकनन्दा नदी का प्राचीन नाम विष्णुगंगा है, इसका उद्गम स्थान संतोपंथ ग्लेशियर है। जो कि बद्रीनाथ से होकर आती है। 

सरस्वती नदी और अलकनंदा नदी आगे जाकर आपस में मिलते है, और जंहा ये नदियां आपस में मिलती है। उस स्थान को केशव प्रयाग कहते है। केशव प्रयाग में सरस्वती नदी मिलने के बाद शांत हो जाती है। और ये नदियां संगम होने के बाद भी यह अलकनंदा नदी कहलाती है। जो आगे जाके देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलने के बाद गंगा नदी बन जाती है।

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