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चैती देवी मंदिर काशीपुर, उत्तराखंड | Chaiti Devi Temple Kashipur Uttarakhand

चैती देवी मंदिर काशीपुर, उत्तराखंड | Chaiti Devi Temple Kashipur Uttarakhand


नमस्कार दोस्तों स्वागत है, आपका हमारे जय उत्तराखंडी समुदाय में आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में स्थित चैती देवी मंदिर के बारे में बताएंगे।

चैती देवी मंदिर उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिलें में काशीपुर शहर के बस स्टैंड से 2.5 किलोमीटर दूर काशीपुर के कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित हैं। चैती देवी मंदिर को माता बालासुन्दरी मन्दिर भी कहा जाता है, बहुत से भक्त यहाँ आध्यात्मिक आनंद तल्लीन होने और पवित्र तीर्थस्थल पर जाने के लिए आते हैं। मंदिर को ज्वाला देवी मंदिर और उज्जैनी देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह काशीपुर के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक हैं।

द्रोण सागर के पास काशीपुर शहर के पुराने उज्जैन किले के बाद मंदिर का नाम उज्जैनी देवी रखा गया है। यह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है और इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यह धार्मिक एवं पौराणिक रूप से ऐतिहासिक स्थान है और पौराणिक काल में इसे गोविषाण नाम से जाना जाता था। चैती देवी मंदिर में प्रत्येक वर्ष बसन्त नवरात्रो के समय चैती देवी मंदिर में एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है, जिसमे हजारों तीर्थयात्री एवं अनुयायी प्रतिवर्ष विशेष रूप से नवरात्र समारोह के समय देवी दुर्गा की पूजा अर्चना के लिए मंदिर मे आते हैं।

चैती देवी मंदिर का इतिहास-

चैती देवी मंदिर के इस स्थान पर भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से माता सती के अंगों को काट दिये जाने के बाद माता की दायीं भुजा यहां गिरी थी। तभी यहां माता की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिला पर उनकी दायीं भुजा की आकृति बनी हुई है, उसी की पूजा की जाती हैं।

बालासुन्दरी के अलावा यहाँ शिव मंदिर, भगवती ललिता मंदिर, बृजपुर वाली देवी के मंदिर, भैरव व काली के मंदिर भी हैं। माँ बालासुन्दरी का एक स्थाई मंदिर पक्काकोट मोहल्ले में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के क्षेत्र में स्थित है। इन ब्राह्मण परिवारों को स्थानीय चंदराजाओं से यह भूमि दानस्वरूप प्राप्त हुई थी। बाद में इस भूमि पर बालासुन्दरी देवी का मन्दिर स्थापित किया गया। बालासुन्दरी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित बताई जाती हैं।

चैती देवी मंदिर काशीपुर की मान्यताएं-

लोक मान्यतानुसार जो लोग इस मन्दिर के वर्तमान पण्डे हैं, उनके पूर्वज मुगलों के समय में यहाँ आये थे और उन्होंने ही इस स्थान पर माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर की स्थापना की थी। इस मंदिर परिसर में एक पाकड़ का पेड़ स्थित है। 

इसका तना और पतली टहनी तक सब खोखला है। स्थानीय पंडा पेड़ के संबंध में मान्यता बताते हैं, कि एक बार एक महात्मा आए उन्होंने मंदिर के पुजारी पंडा को शक्ति दिखाने को कहा तो पंडा ने कदंब के पेड़ पर पानी का छींटा मारा तो पेड़ फ़ौरन सूख गया। तब उन्होंने फिर उसे हरा करने को कहा तो पंडा ने पेड़ हरा कर दिया, लेकिन पेड़ खोखला रह गया। यह पेड आज भी यहां दिखाई देता हैं।

चैती देवी मंदिर का मेला-

चैती देवी मंदिर माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर में भी नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का तो समुह ही उमड़ पड़ता है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ तरह-तरह की दुकानें भी मेले में लगती हैं। यहां देवी महाकाली के मंदिर में बलि भी चढाई जाती थी। 

अन्त में दशमी की रात्रि को बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती है। प्राय: चैती मेले में पूरी ऊर्जा काशीपुर से डोला चैती मेला स्थान पर पहुँचने पर ही आती है। डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है तथा बकरों का बलिदान भी किया जाता है। 

डोले को स्थान-स्थान पर श्रद्धालु रोककर पूजन अर्चन करते और भगवती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। मेले का समापन इसके बाद ही होता है। जनविश्वास के अनुसार इन दिनों जो भी मनौती माँगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती हैं।

उम्मीद करते है, कि आपको हमारी यें पोस्ट पसन्द आयी होगी।

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