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🌸 उत्तराखंड के 10 प्रमुख त्योहार – इतिहास और महत्व

🌸 उत्तराखंड के 10 प्रमुख त्योहार – इतिहास और महत्व


उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहाँ का हर पर्व, हर परंपरा, प्रकृति और देवताओं से गहराई से जुड़ी हुई है। यहाँ के त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि लोकजीवन, कृषि, संगीत और सांस्कृतिक विरासत को भी सहेजे हुए हैं। आइए जानते हैं उत्तराखंड के 10 प्रमुख त्योहारों का इतिहास और महत्व।


1. कुमाऊँनी होली 🎶



कुमाऊँ क्षेत्र की होली पूरे भारत में सबसे अनोखी मानी जाती है। यहाँ यह केवल रंगों का नहीं, बल्कि शास्त्रीय रागों और भक्ति गीतों का पर्व है। "बैठकी होली", "महिला होली" और "खड़ी होली" की परंपरा मध्यकालीन भक्ति आंदोलन से जुड़ी है।

👉 महत्व: सामूहिकता, सांस्कृतिक एकता और भक्ति की धारा को जीवंत बनाए रखना।


2. फूलदेई 🌼



वसंत ऋतु के आगमन पर बच्चे घर-घर जाकर आँगन में फूल बिखेरते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं। इसे "बाल उत्सव" भी कहा जाता है।

👉 महत्व: प्रकृति, नए जीवन और समृद्धि का प्रतीक।


3. हरेला 🌱


सावन माह में मनाया जाने वाला यह पर्व कृषि और हरियाली से जुड़ा है। घर में मिट्टी भरकर गेहूँ, जौ, मक्का आदि बोए जाते हैं और उनकी बढ़त का उत्सव मनाया जाता है।

👉 महत्व: पर्यावरण, हरियाली और परिवार की खुशहाली का संदेश।


4. गंगा दशहरा 🌊


गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति में हरिद्वार और ऋषिकेश में विशेष आयोजन होता है। लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं।

👉 महत्व: यह शुद्धिकरण और पापों से मुक्ति का पर्व है।


5. नन्दा देवी राजजात यात्रा 🏔️


हर 12 साल में होने वाली यह यात्रा उत्तराखंड का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इसे "हिमालयन कुंभ" भी कहा जाता है। यह देवी नन्दा को उनके ससुराल (कैलाश) विदा करने की प्रतीकात्मक परंपरा है।

👉 महत्व: आस्था, साहस और लोकसंस्कृति का महान उत्सव।


6. मकर संक्रांति (उत्तरायणी) ☀️


सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के दिन को यहाँ "उत्तरायणी" कहा जाता है। बागेश्वर का उत्तरायणी मेला विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

👉 महत्व: दान, स्नान और नए कृषि चक्र का आरंभ।


7. बग्वाल मेला ⚔️


चम्पावत और देवी मंदिरों में मनाया जाने वाला यह पर्व शक्ति पूजा और लोक पराक्रम से जुड़ा है। लोग सामूहिक रूप से देवी की आराधना करते हैं।

👉 महत्व: साहस, सामूहिक शक्ति और आस्था का प्रतीक।


8. इगास-बग्वाल (गढ़वाली दीपावली) 🪔


दीपावली के 11वें दिन गढ़वाल क्षेत्र में "इगास" मनाया जाता है। माना जाता है कि यह पर्व उन सैनिकों की वापसी की खुशी में शुरू हुआ था, जो दीपावली के समय घर नहीं आ पाते थे।

👉 महत्व: गढ़वाली परंपरा और लोकजीवन का प्रतीक।


9. जागर 🙏


उत्तराखंड की अनूठी धार्मिक परंपरा है जिसमें लोकदेवताओं और पितृों का आवाहन ढोल-दमाऊँ और गीतों के माध्यम से किया जाता है।

👉 महत्व: सामाजिक न्याय, आध्यात्मिकता और लोक आस्था को जीवित रखना।


10. गौरा देवी (गौरा महोत्सव) 🌺


यह पर्व शिव-पार्वती के मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। महिलाएँ इसमें विशेष उत्साह से भाग लेती हैं और पारंपरिक नृत्य-गीत करती हैं।

👉 महत्व: वैवाहिक सुख, समृद्धि और सामूहिक मेल-जोल का पर्व।

उत्तराखंड के त्योहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि ये प्रकृति, आस्था और लोकजीवन का अद्भुत संगम हैं। हर पर्व में सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर की झलक मिलती है। यही कारण है कि देवभूमि के त्योहार यहाँ की पहचान और गर्व का हिस्सा बने हुए हैं।

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