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भैरव बाबा की कहानी | उनकी उत्त्पति कैसे हुई?

भैरव बाबा की कहानी|उनकी उत्त्पति कैसे हुई

काल भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं, शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।

शास्त्रो के अनुसार एक बार कुछ ऋषि मुनियों ने सभी देवी देवताओं से पूछा कि आप सभी मे सबसे श्रेष्ठ ओर सबसे ज्ञानी कौन है।


तो सभी ने एक ही स्वर में कहा कि इस ब्रामण्ड मे सबसे अधिक सर्व शक्तिशाली और ज्ञानी ओर सबसे अधिक पूज्यनीय भगवान भोलेनाथ जी है जो सब मे महान है।
यह बात सिर्ष्टिकरता ब्रह्मा जी को पसंद नही आई और वो भगवान शिवशंकर जी की वेशभूषाओं की मजाक करने लगे पर भगवान शिवजी ने इस ध्यान नही दिया।


ब्रम्हा जी अपने पाचवे मुख से लगातार भोलेनाथ जी को लगातार भला बुरा कहने लगे, उनके पाचवे शीस ने कहा कि जो शिव अपने शरीर मे भस्म लगाते है, बिना वस्त्र के रहते है और जिनके पास धन वैभव कुछ नही है वह कैसे श्रेष्ठ हो सकते है । इन अपमानित वचन को सुनकर सभी देवी देवताओं और को बहुत दुख हुआ।
उसी समय भगवान शिव और पार्वती माता के तेज से एक तेज पुंज प्रकट हुआ , जो जोर जोर से रुद्र कर रहे थे। उस बालक को देखकर ब्रह्मा जी को लगा की यह मेरे तेज से उत्पन हुआ है। ये समझकर ब्रह्मा जी ने उसका नाम रुद्र रख दिया उन्होंने यह कहा कि तुम मेरे तेज से प्रकट हुए हो अतः तुम भरण पोषण करने वाले होंगे और तुम्हे काल भैरव के नाम से जाना जाएगा।
महाकाल के प्रचंड रूप में बालक रूप में जो भैरव उत्पन्न हुए थे वह ब्रह्मा जी द्वारा भगवान भोले नाथ जी के प्रति कटु वचन को लगातार कहने के कारण क्रोध में आकर उन्होंने अपने हाथ की कानि उंगली के नाखून से उन्होंने ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट डाला ओर सब जगह हाहाकार मच गया ।

कहते है कि ब्रह्मा जी अपने पाचवे सिर से पांचवे वेद की भी रचना करने वाले थे परंतु उनका पाचवे मस्तक काल भैरव के द्वारा क्रोध में कट जाने कर कारण उनके चार ही मस्तक रह गए इसी कारण वेद भी चार है।
यही से भैरव को ब्रह्मा जी की हत्या का पाप लग गया और यही से उन्हें काल भैरव कहा जाने लगा इस श्राप से बचने के लिए शिव भगवान ने भैरव से कहा कि तुम ब्रह्मा जी कटे हुए मस्तक को हाथ मे लेकर भीख मांग कर अपने पापो का कस्ट भोगो ओर जब तक इस पाप से मुक्त ना हो जाओ तब तक त्रिलोक में घूमते रहो ओर फिर शिव जी ने कहा कि तुम काशी (वाराणसी) में चले जाओ ओर वही रहो ।
भैरव जी ने जैसे ही काशी पहुचे तो ब्रह्मा जी का शीश स्वतः ही उनके हाथ से छूट कर काशी में गिर गया और भैरव बाबा पाप मुक्त हो गए ।
उसी दिन से काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहते है।


और जिस जगह ब्रह्मा जी का कापल गिरा वह स्थान " कापल मोचन " कहलाया ।


जय काल भैरव।

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