सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भूमिया देवता के रूप में न्यायदेवता गोल्ज्यू देवता

भूमिया देवता के रूप में न्यायदेवता गोल्ज्यू देवता गोल्ज्यू न्यायदेवता उत्तराखंड की लोकसंस्कृति में रचे बसे ईस्ट देव हैं। लोकदेवता मूलतः लोकशक्ति के जागरण और जन-प्रतिकार के प्रतीक देव भी बन जाते हैं। इन्हें कभी कृष्णावतारी कहा जाता है तो कभी इनकी शिव के अवतारी देव के रूप में आराधना की जाती है। सजग रचनाकार के लिए इन लोकदेवों का चरित्र हर काल में प्रासंगिक और अपने अपने समय की परिस्थितियों के अनुरूप ही उर्वर बना रहता है। न्यायदेवता ग्वेल के देव चरित्र का विकास भी बहु आयामी धरातल पर हुआ है। वे उत्तराखंड में मुख्य रूप से न्याय देवता के रूप में पूजनीय देव तो रहे ही हैं साथ साथ भूमिया देवता के रूप में भी वे लोकरक्षक देव के रूप में भी उपास्य देव बन गए। सोचने वाली बात यह है, कि पाली पछाऊं के अनेक इलाकों में खासकर रानीखेत मासी मोटर मार्ग में स्थित ‘सुरेग्वेल’ का एक प्राचीन मंदिर आज भी भूमिदेवता के मंदिर के नाम से जाना जाता है। गोल्ज्यू के इसी मंदिर के कारण यह स्थान ‘सुरेग्वेल’ के नाम से प्रसिद्ध है। हे भूमिदेवता ग्वेल तुम दीन - दुखियों के लिए न्यायकारी देव हो देवभूमि में तेरे नाम की महिमा अपरंपार...

गोल्ज्यू देवता की जन्मभूमि कहां पर है, धुमाकोट में चंपावत में या फिर नेपाल में ?

गोल्ज्यू देवता की जन्मभूमि कहां पर है, धुमाकोट में चंपावत में या फिर नेपाल में ? नमस्कार दोस्तों क्या आपको पता है कि गोल्ज्यू देवता की जन्मभूमि कंहा पर है, धुमाकोट में चंपावत में या फिर नेपाल में चलिये जानते है। उत्तराखंड के न्याय देवता गोल्ज्यू के जन्म से सम्बंधित विभिन्न जनश्रुतियां एवं जागर कथाएं इतनी विविधताओं को लिए हुए हैं कि ग्वेल देवता की वास्तविक जन्मभूमि निर्धारित करना आज भी बहुत कठिन है। न्याय देवता की जन्मभूमि धूमाकोट में है,चम्पावत में है या फिर नेपाल में? इस सम्बंध में भिन्न भिन्न लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। कहीं ग्वेल देवता को ग्वालियर कोट चम्पावत में राजा झालुराई का पुत्र कहा गया है तो किसी जागर कथा में उन्हें नेपाल के हालराई का पुत्र बताया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित पारम्परिक जागर कथाओं और लोकश्रुतियों में भी न्यायदेवता ग्वेल की जन्मभूमि के बारे में अनिश्चयता की स्थिति देखने में आती है। पिछले कुछ वर्षों में ग्वेल देवता विषयक जो लिखित साहित्य सामने आया है, उसमें भी जन्मभूमि के सम्बंध में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। उदाहरण के लिए मथुरादत्त बेलवाल द्वारा सन् 198...

श्री कण्डोलिया देवः सप्तरत्न: स्त्रोतम् आरती

श्री कण्डोलिया देवः सप्तरत्न: स्त्रोतम् आरती वन्दे त्वम् करूणाँँकरम् भूमि देवायः पालकम्  वन्दे भक्तजनः प्रियम् मात् कालिके नन्दनम्  श्री कण्डोलिया देवाः नमो नमम् ।।१।।टेक गौर भैरवाय रूप त्वम् वरदानी गिरिजा शिवम्  कत्यूरी वंश : गोत्र उत्पनः झालुराई कुल दीपकम्  श्री कण्डोलिया देवाः नमो नमम् ।।२।।टेक जनमहि देवाः धुमकोटम् गढ चम्पावत वासनम् झालीमाली कुल भूदेविम् गुरू गोरख भक्तम् प्रियम्  श्री कण्डोलिया देवाः नमो नमम् ।।३।।टेक गोरि गंगाः सने तटे भाना घेवरः आश्रयम्  कृष्ण स्वरूपा कृष्णायाम् ग्वेल गोरिया गोलू देवम् श्री कण्डोलिया देवाः नमो नमम् ।।४।।टेक श्वेत उष्णीशः यज्ञोपवितम् ललाट चन्दन अक्षतम्  श्वेत ध्वजा श्वेत अश्वरूढम् कपाल मौलि कन्धरम्  श्री कण्डोलिया देवाः नमो नमम् ।।५।।टेक हस्त कृपाण घर धर्नुधारी पिवतः सुगन्धित तमालम्  न्यायधीष न्याईल राजन् न्याय न्यायेन त्वम् प्रियम् श्री कण्डोलिया देवाः नमो नमम् ।।६।।टेक वृक्षः शिलंग निज आसनम् परचाधारी देव त्वम् शष्टाँगतः कुरू प्रणाँँयम् धूप दीप दुग्ध नैवेद्यम्  श्री कण्डोलिया देवाः नमो...

महाबगढ़ उत्तराखंड चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मभूमि

महाबगढ़ उत्तराखंड चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मभूमि नमस्कार दोस्तो आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में महाबगढ़ उत्तराखंड चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मभूमि के बारे में बताएंगे। महाबगढ़ उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में स्थित है। जिसके अंतर्गत पौराणिक पर्वत श्रृंखलाओं और अनेकों ऋषि मुनियों की ध्यान – तपोस्थली, आश्रमों और सिद्ध पीठों का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में जैसे विष्णु पुराण, महाभारत काल का भीष्म पर्व, कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि पुराणों में वर्णित है, जिसमें मणिकूट पर्वत एवं हिमकूट पर्वत उल्लेखनीय हैं।  मणिकूट पर्वत में श्री नीलकंठ महादेव, यमकेश्वर महादेव, अचलेश्वर महादेव, मां भुवनेश्वरी देवी, मां चण्डेष्वरी देवी, मां विंध्यवासिनी, गणडांडा आदि देव स्थल हैं। दूसरी ओर हिम कूट पर्वत श्रृंखलाओं से जुड़े महाबगढ़ शिवालय, कोटेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इसी इलाके में भारत देश के नाम की कहानी छिपी है। इसी इलाके में एक अनोखी प्रेम कहानी की दास्तान है। कोटद्वार से महाबगढ़ की दूरी-65 किमी है। कोटद्वार से 65 किमी पहाड़ी सड़क मार्ग से दुगड्डा, हनुमंती, कांडाखाल, पौखाल, न...