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नंदा देवी के भाई लाटू देवता की कहानी

नंदा देवी के भाई लाटू देवता की कहानी


नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में माँ नंदा देवी के भाई लाटू देवता की कहानी के बारे में बताएंगे।



लाटू देवता जिनका उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के वॉण गांव में मंदिर है। यह विशेष मंदिर लाटू देवता का है जो इस मंदिर में कैद हैं। इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक बार ही खुलते हैं और उस समय भी पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा करते हैं।



कहते हैं कि लाटू देवता इस मंदिर में नागराज के रूप में रहते हैं। उन्हें देखकर पुजारी डर न जाए इसलिए पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर में जाते हैं। लाटू देवता भगवती नंदा देवी के धर्मभाई और भगवान शिव के साले हैं। नंदा देवी भी मां पार्वती का ही एक रूप है। 



नंदा देवी का कोई भाई नहीं था। एक दिन कैलाश में माँ नंदा देवी सोचती है कि अगर उसका भी कोई भाई होता तो उनसे मिलने जरूर आता। उसके लिये भिटोली ( विवाहित बेटी को दी जाने वाली भेंट ) लेकर आता। इससे उसे भी अपने मायके के कुशल समाचार मिल जाते।

ऐसा सोचते हुए नंदा देवी को मायके की याद आने लग जाती है। और वह उदास हो जाती हैं। भगवान शिवजी ने देखा तो पूछा नंदा तुम चुपचाप क्यों बैठी हो। माँ नंदा देवी कहती हैं कि मेरे स्वामी, मेरे भगवान मुझे मायके की याद आ रही है। मेरा कोई भाई नहीं है। जो मेरा भाई होता तो मेरे पास आता कभी मेरे लिये भिटोली लाता तो कभी मायके से कलेवा।

तब फिर शिवजी कहते हैं कि कन्नौज के राजा का छोटा बेटा है लाटू , तुम उसे अपना धर्म भाई बना लो। इस पर नंदा देवी सोचती है कि अब तो उसे अपने मायके जाने का अवसर मिल जाएगा। नंदा कहती हैं कि क्या मैं अपने मायके जा सकती हूं। और वहां से कन्नौज जाऊंगी और लाटू को अपना भाई बनाकर साथ में लाऊंगी। तब लाटू मुझे ससुराल छोड़ने भी आएगा। 

माँ नंदा देवी का उत्साह देखकर भगवान भोलेनाथ मंदमंद मुस्कराते हैं और उन्हें मायके जाने की अनुमति दे देते हैं। नंदा देवी खुशी- खुशी अपने मायके रिसासु पहुंच गयी। और वह अपने पिताजी हेमंत और मां मैणावती से आज्ञा लेकर लाटू को अपना भाई बनाने के लिये कन्नौज चली गयी।

कन्नौज की कुल देवी भी मां दुर्गा यानि पार्वती थी। जब नंदा वहां पहुंची तो उन्हें बहुत खुशी हुई। कन्नौज की रानी का नाम भी मैणा था। उनके दो बेटे थे बाटू और लाटू, लेकिन उनकी कोई बेटी नहीं थी। नंदा को देखकर उन्हें लगा कि जैसे उनके घर में बिटिया आ गयी है। रानी मैणा नंदा देवी से वहां आने का कारण पूछती है तब नंदा देवी कहती है कि मेरा कोई भाई नहीं है क्या मैं लादू को अपना भाई बनाकर साथ में ले जा सकती हूं।

रानी मैणा सोचती है कि कहां कन्नौज और कहां रिसासू और वहीं से भी कई दूर कैलाश पर्वत। मैणा पहले मना कर देती है लेकिन नंदा के फिर से आग्रह करने पर मान जाती है। इस तरह से नंदा देवी अपने भाई लाटू के साथ मायके लौट आती है। नंदा देवी बहुत खुश थी कि अब उसका भी भाई है जो अब उसके ससुराल में मायके की कुशल क्षेम और भिटोली लेकर आएगा।

जब नंदा देवी अपने ससुराल लौटती है। तो गांव वाले ही नहीं इलाके के सभी लोग उन्हें विदा करने के लिये आते हैं। नंदा देवी के साथ उनका भाई लाटू भी रहता है। नंदा देवी की डोली जब वॉण गांव में पहुंचती है तो वह नदी में नहाने के लिये चली जाती है। और इधर लाटू को तेज प्यास लगने लगती है तो वह एक घर में घुस जाता है जहां पर एक बुढ़ा आदमी मिलता हैं।

लाटू ने बुढ़े आदमी से पानी देने के लिये कहता है। तो बुढ़ा कहता है, कि कोने में दो गगरी हैं उनमें से एक में पानी है खुद पी लो। लाटू एक गगरी में से सभी पानी पी जाता है। परन्तु असल में वहां एक गगरी में पानी तो दूसरी में स्थानीय कच्ची शराब होती है। जिसे लाटू गलती से कच्ची शराब पी जाता है। और उसको नशा चढ़ जाता है जिससे वह उत्पात मचाने लगता है। व गाँव में कोहराम मचा देता हैं, जिससे सभी गाँव वाले परेशान हो जाते है। 

जिससे माँ नंदा देवी गुस्से में लाटू को बांधकर कैद करने का आदेश देती है, और कहती हैं कि उसे हमेशा यहीं पर कैद करके रखा जाए। जब लाटू का नशा उतरता है तो वह बहुत पछताता है। और माँ नंदा देवी से क्षमा मांगकर सारी बात बताता है, माँ नंदा देवी भी तब तक गलती का कारण समझ जाती है। 

नंदा देवी तब लाटू देवता से कहती है कि वॉण गांव में उसका मंदिर होगा और बैशाख महीने की पूर्णिमा को उसकी पूजा होगी। और यही नहीं हर 12 साल में जब नंदा राजजात जाएगी तो लोग लाटू देवता की भी पूजा करेंगे। तभी से नंदा राजजात के वॉण में पड़ने वाले 12 वें पड़ाव में लाटू देवता की पूजा की जाती है। कहते हैं कि लाटू देवता वॉण गांव से हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा को भेजने के लिये भी जाते हैं। और श्री लाटू देवता की वर्ष में केवल एक ही बार पूजा की जाती है।


माँ नंदा देवी की जय।
श्री लाटू देवता की जय।


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