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गुरूद्वारा रीठा साहिब चम्पावत उत्तराखंड

गुरूद्वारा रीठा साहिब चम्पावत उत्तराखंड


नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के चम्पावत जिले में स्थित गुरूद्वारा रीठा साहिब के बारे में बतायेंगे।


रीठा साहिब गुरुद्वारा उत्तराखंड के चम्पावत जिलें में लांदिया एवं रतिया नदियों के संगग पर स्थित है। इसको 1960 में बनाया गया था और यह दयूरी गांव के पास स्थित है। धर्म के संस्थापक गुरूनानक देव के द्वारा भी इस स्थान का दौरा किया गया था। उन्होंने गोरख पंथी जोगियों के साथ यहाँ पर अनेक आध्यात्मिक चर्चाए की गुरूनानक देव ने यहाँ पर उगे हुए रीठा के पेड़ से रीठा फल भी तोड़ा था। यह रीठे का पेड़ अभी भी गुरूद्वारे के परिसर में है। उनके दिव्यस्पर्श से कटुवा, साबुन का फल भी मीठा हो गया। इसी कारण से यह स्थान रीठा साहिब के नाम से जाना जाता है।



रीठा साहिब गुरुद्वारे के निकट ढ़ेरनाथ का मंदिर स्थित है।
बैसाखी पूर्णिमा के अवसर पर इस मंदिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। शान्ति का केन्द्र होने के साथ-साथ यह गुरूद्वारा सदियों से आपसी भाईचारक-सांझ का भी प्रतीक है।

गुरूद्वारा रीठा साहिब का इतिहास व कहानी


श्री रीठा साहिब गुरुद्वारा सभी सिख लोगों के लिए आकर्षण का स्थान है और वे श्री रीठा मीठा साहिब के इस पवित्र तीर्थ को विशेष श्रद्धांजलि देते हैं। एक इतिहास है कि श्री गुरु नानक जी ने इस जगह का दौरा किया था। इस स्थान का नाम रीठा साहिब पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा है जो कि कुछ इस प्रकार है।

इस स्थान के बारे में यह मान्यता है कि सन् 1501 में श्री गुरु नानक देव अपने शिष्य “बाला” और “मरदाना” के साथ रीठा साहिब आए थे। इस दौरान गुरु नानक देव जी की उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत “गुरु गोरखनाथ” के चेले “ढ़ेरनाथ” के साथ हुई। इस मुलाकत के बाद दोनों सिद्ध प्राप्त गुरु “गुरु नानक” और “ढ़ेरनाथ बाबा” आपस में संवाद कर रहे थे। दोनों गुरुओं के इस संवाद के दौरान मरदाना को भूख लगी और उन्होंने गुरु नानक से भूख मिटाने के लिए कुछ मांगा तभी गुरु नानक देव जी ने पास में खड़े रीठा के पेड़ से फल तोड़ कर खाने को कहा, लेकिन रीठा का फल आम तौर पर स्वाद में कड़वा होता हैं, लेकिन जो रीठा का फल गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना जी को खाने के लिए दिया था वो कड़वा “रीठा फल” गुरु नानक की दिव्य दृष्टि से मीठा हो गया। जिसके बाद इस धार्मिक स्थल का नाम इस फल के कारण “रीठा साहिब” पड़ गया।

साथ ही रीठा साहिब गुरुद्वारे की यह मान्यता है कि रीठा साहिब में मत्था टेकने के बाद श्रद्धालु ढ़ेरनाथ के दर्शन कर अपनी इस धार्मिक यात्रा को सफल बनाते है। आज भी रीठा का फल खाने में मीठा होता है और प्रसाद में वितरित किया जाता है। वर्तमान समय में वृक्ष अभी भी गुरुद्वारा के परिसर में खड़ा है।


उम्मीद करते है कि आपको रीठा साहिब से जुड़ी यह पोस्ट पसन्द आयी होगी।

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