Ads Top

चम्पावत में घूमने की जगह | Champawat Me Ghumne Ki Jagah | Champawat Top 10 Tourist Places In Hindi | Champawat Tourist Places | Uttarakhand

चम्पावत में घूमने की जगह | Champawat Me Ghumne Ki Jagah | Champawat Top 10 Tourist Places In Hindi | Champawat Tourist Places | Uttarakhand


नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में चम्पावत में घूमने की जगह | Champawat Me Ghumne Ki Jagah के बारे में बताएंगे।



पिथौरागढ़ मुख्यालय से 76 किलोमीटर दूर, चंपावत 1615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चंपावत उत्तराखंड राज्य का जिला भी हैं। चंपावत चन्द वंश के शासकों की राजधानी और अपनी प्राकृतिक सुंदरता और प्रसिद्ध मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। राजा का प्राचीन किला, अब तहसील कार्यालय का मुख्यालय है। चंपावत एक ऐतिहासिक स्थान है और यहाँ उच्च कलात्मक मूल्य के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। बालेश्वर मंदिर चंपावत का प्रसिद्ध आकर्षण है। चंपावत में नागनाथ मंदिर कुमाऊं की प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। चंपावत से 4-5 किमी की दूरी पर ‘एक हैथीया का नौला’ है, जिसे एक हाथ के कारीगर द्वारा सिर्फ एक रात में बनाया गया था। गोलू  देवता की कहानी चंपावत के गौरल चौड़ के साथ भी जुड़ी हुई है। माना जाता है कि भगवान विष्णु को ‘कूर्म अवतार’ (कछुए के रूप में अवतार) के रूप में यहाँ प्रकट हुए है। इस पहाड़ी को कुर्मांचल पर्वत के रूप में भी जाना जाता है। चंपावत में एक छोटा सा किला भी है। जिम कोर्बेट इस क्षेत्र में बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में आये थे ताकि मानव खाने वाले बाघों का शिकार किया जा सके। उनकी पहली पुस्तक (मैन ईटर ऑफ कुमाऊं) की पहली कहानी चंपावत से संबंधित है।

चंपावत में घूमने की जगह -

1. पूर्णागिरि मंदिर | Purnagiri Temple -

पूर्णागिरि का मंदिर या पुण्यागिरी, उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत पर  5500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। ( Purnagiri ka mandir ) माँ पूर्णागिरि मंदिर चंपावत से लगभग 92 किलोमीटर दूर स्थित है। पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है। पूर्णागिरि का मंदिर काली नदी के दाएं ओर स्थित है। काली नदी को शारदा भी कहते हैं। यह मंदिर माता के 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पूर्णागिरि में माँ की पूजा महाकाली के रूप में की जाती है।

2. लोहाघाट | Lohaghat -

1706 मीटर की ऊंचाई पर, लोहाघाट 62 किलोमीटर पिथोरागढ़ से टनकपुर के रास्ते पर और चंपावत जिला मुख्यालय से 14 किमी दूर है। लोहाघाट लोहवाती नदी के किनारे स्थित है तथा ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व का केंद्र है। 1841 में, इतनी दूर यात्री बैरोन को यह  आश्चर्य होता था कि भारत सरकार इसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में क्यों नहीं विकसित कर रही थी। गर्मियों के मौसम में लोहाघाट बुरांस के फूलों से भरा हुआ रहता है।

3. गोलू देवता मंदिर चम्पावत | Golu Devta Temple Champawat -

गोलू (गोल्ज्यू) देवता मंदिर चंपावत, उत्तराखंड के चम्पावत जिले के अंदर मंच तामली मोटर मार्ग, कनलगाओं गांव में स्थित है। चम्पावत के गोलू मंदिर, गोल्ज्यू देवता का जन्म स्थान भी है। 

4. गुरुद्वारा रीठा साहिब | Gurudwara Reetha Sahib -

रीठा साहिब गुरुद्वारा उत्तराखंड के चम्पावत जिलें में लांदिया एवं रतिया नदियों के संगग पर स्थित है। इसको 1960 में बनाया गया था और यह दयूरी गांव के पास स्थित है। धर्म के संस्थापक गुरूनानक देव के द्वारा भी इस स्थान का दौरा किया गया था। उन्होंने गोरख पंथी जोगियों के साथ यहाँ पर अनेक आध्यात्मिक चर्चाए की गुरूनानक देव ने यहाँ पर उगे हुए रीठा के पेड़ से रीठा फल भी तोड़ा था। यह रीठे का पेड़ अभी भी गुरूद्वारे के परिसर में है। उनके दिव्यस्पर्श से कटुवा, साबुन का फल भी मीठा हो गया। इसी कारण से यह स्थान रीठा साहिब के नाम से जाना जाता है।

5. बालेश्वर मंदिर | Baleshwar Temple -

बालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है, जो कि उत्तराखंड के चंपावत शहर में स्थित है। बालेश्वर मंदिर पत्थर की नक्काशी का एक अद्भुत प्रतीक है। मुख्य बालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है (जिन्हें बालेश्वर भी कहा जाता था)। बालेश्वर के परिसर में दो अन्य मंदिर भी उपस्थित हैं जिसमे एक “रत्नेश्वर” को समर्पित है और दूसरा मंदिर “चम्पावती दुर्गा” को समर्पित है। इस मंदिर समूह में आधा दर्जन से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हैं। मुख्य शिवलिंग स्फुटिक का है। जो अपनी चमत्कारिक शक्ति के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। स्थापत्य कला के बेजोड रूप से बने इस मंदिर के समूह की दीवारों में अगल-अलग मानवों की मुद्राएं, देवी देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं। चंद शासकों ने 13वीं सदी में बालेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर पर मौजूद शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 1272 में बना है। यह चंपावत जिले का एक खूबसूरत तीर्थस्थान है। दरअसल यह मंदिरों का समूह है, जिसका निर्माण चंद वंश ने करवाया था।

6. आदित्य मंदिर | Aditya Temple -

आदित्य मंदिर चम्पावत शहर से 75 किलोमीटर दूर ग्राम रमक में स्थित देवालय सूर्य देवता को समर्पित है, जो कि शिखर में फूल की घाटियों और हरे भरे वनों से घिरा है। एक विश्वास के अनुसार, यह मंदिर चन्द वंश के राजाओं द्वारा बनाया गया था। मंदिर का निर्माण शिखर शैली में करावाया गया है एवम् वास्तुकला से मंदिर की संरचना ओरिसा में स्थित कोनार्क सूर्य मंदिर के जैसे दिखती है। द्वापर युग में पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आये थे और उन्होंने छह दिनों तक यहां भगवान शिव का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि 16 वीं शताब्दी के दौरान, राजा चन्द ने भक्त सम्राट के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था। आदित्य मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर चंद राजाओं के समय पर बनाया गया एक काष्ठ कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। मंदिर की देखभाल न हो पाने की वजह से काष्ठ कला पूरी तरह नष्ट हो गयी और वर्तमान में ग्राम के मूल निवासी “श्री लोकमणि अटवाल जी” की सहायता से इस सुन्दर मंदिर का निर्माण किया गया।

7. पंचेश्वर महादेव मंदिर | Pancheshwar Mahadev Temple -

पंचेश्वर महादेव मंदिर लोहाघाट उत्तराखंड से लगभग 38 कि.मी. की दूरी पर काली एवं सरयू नदी के संगम पर स्थित है। पंचेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का एक पवित्र मंदिर है। इस मंदिर को स्थानीय लोगों द्वारा चुमू (ईष्ट देवता) के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोग चैमु की जाट की पूजा करते हैं। मंदिर में भक्त ज्यादातर चैत्र महीने में नवरात्रि के दौरान आते हैं और इस स्थल पर मकर संक्रान्ति के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है। पंचेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का एक पवित्र मंदिर है। पंचेश्वर मंदिर में शिव की सुंदर मूर्ति और शिवलिंग नाग देवता के साथ स्थापित है। नदी के संगम पर डुबकी लगाना बड़ा ही पवित्र माना जाता है। पंचेश्वर मंदिर सुंदर जंगल के बीचो बीच और आसपास के जंगलों, धाराओं और उच्च फूलों से प्राकृतिक फूलों से घिरा हुआ है। पंचेश्वर महादेव मंदिर के बारे में स्थानीय लोगों का विश्वास है कि भगवान शिव ने पास के गांवों के पशुओं की रक्षा की है। मंदिर की भक्ति के रूप में भगवान शिव को भेटस्वरुप “घंटिया” और “दूध” भोग के रूप पेश किया जाता है।

8. एबॉट माउंट | Abbott Mount -

उत्तराखंड के चंपावत जिले में यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल लोहघाट से लगभग 8 किमी और चम्पावत जिले में काली नदी सीमा के पास कुमाऊं पहाड़ियों के पूर्वी हिस्से में स्थित है। लोहाघाट समुद्र तल से 7000 फीट ऊपर की ऊंचाई पर स्थित है। माउंट एबट की स्थापना 20 वीं शताब्दी में जॉन हेरोल्ड एबॉट नामक एक अंग्रेजी व्यवसायी ने की थी। इसे जॉन हेरॉल्ड एबॉट द्वारा स्थापित किया गया इसीलिए इसका नाम “माउंट एबट” रखा गया यह स्थान ब्रिटिश राज में अंग्रेजो के शासन काल में बसाया गया था यह स्थान कुमाऊ हिमालय की गोद में बसा हुआ है जहाँ से हिमालय का नज़ारा देखते ही बनता है। माउंट एबट दुनिया भर में अपनी ख़ूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। माउंट एबट कुमाऊ हिमालय की प्रकृति की गोद में बसा हुआ विश्व की सबसे लम्बी, ऊँची, चौड़ी, पर्वत श्रंखला है, माउंट एबट के शीर्ष पर एक खुला मैदान है और इसकी ढलान पर यूरोपीय बंगला उद्यान एवम् बगीचे स्थित है। माउंट एबट घने जंगलो के बीच में स्थित है, वर्तमान में इस जगह पर उस समय काल की तक़रीबन 16 पुरानी हवेलियां हैं।

9. मायावती आश्रम | Mayawati Ashram -

चंपावत से 22 किलोमीटर और लोहाघाट से 9 किलोमीटर दूर, यह आश्रम 1940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अद्वैत आश्रम की स्थापना के बाद इसे प्रसिद्धि मिली। यह आश्रम भारत और विदेश से आध्यात्मिक लोगों को आकर्षित करता है, मायावती का आश्रम पुराने बागान के बीच स्थित  है। 1898 में अल्मोड़ा के अपने तीसरे दौरे के दौरान, स्वामी विवेकानंद ने मद्रास से मायावती में ‘प्रबुद्ध भारत’ के प्रकाशन कार्यालय को स्थानांतरित करने का फैसला किया था, तब से यह प्रकाशित किया जाता है। मायावती में एक पुस्तकालय और एक छोटा सा संग्रहालय भी हैं।

10. बाणासुर का किला | Banasaur Ka Kila -

उत्तराखंड के चंपावत जिले के लोहाघाट में बाणासुर का किला भगवान श्रीकृष्ण द्वारा संसार से बुराई का नाश करने की गवाही देता है। बाणासुर का किला लोहाघाट में समुद्र तल से 1859 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण मध्यकाल में किया गया था। एक और मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने यहां बाणासुर नाम के एक दानव की हत्या की थी। यह किला लोहाघाट से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर 'कर्णरायत' नामक स्थान के पास स्थित है।


उम्मीद करते है, आपको पोस्ट पसन्द आयी होगी।

उत्तराखंड के इतिहास, सांस्कृतिक, साहित्यिक, उत्तराखंड के सौंदर्य, प्राचीन धार्मिक परम्पराओं, धार्मिक स्थलों, खान-पान, दैवीक स्थलों, धार्मिक मान्यताएँ, संस्कृति, प्रकार्तिक धरोहर और लोक कला के साथ-साथ काव्य और कहानी संग्रह के बारे मेंं विस्तार पूर्वक में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे

YOUTUBE CHANNEL को जरूर SUBSCRIBE करें।

Youtube Channel Link-





कोई टिप्पणी नहीं:

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Blogger द्वारा संचालित.