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अटरिया माता मंदिर रुद्रपुर, उत्तराखंड | Atariya Mata Mandir Rudrapur, Uttarakhand

अटरिया माता मंदिर रुद्रपुर, उत्तराखंड | Atariya Mata Mandir Rudrapur, Uttarakhand


नमस्कार दोस्तों स्वागत है, आपका हमारे जय उत्तराखंडी समुदाय में आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में रुद्रपुर शहर में स्थित अटरिया माता मंदिर के बारे में बताएंगे।

अटरिया माता मंदिर उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के रुद्रपुर शहर में जगतपुरा रम्पुरा में स्थित हैं। अटरिया मंदिर देवी अटारी को समर्पित हैं। अटरिया मंदिर एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यहां पर स्थानीय लोगों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के सुदूरक्षेत्रों के श्रद्धालु भी आकर पूजा अर्चना करते हैं। इस क्षेत्र के थारू व बुक्सा जनजाति के लोग विवाह के उपरान्त नवदम्पत्ति को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने तथा देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये अवश्य यहां लाते हैं।

मंदिर परिसर में इस प्रमुख मंदिर के अतिरिक्त माँ शीतला, भद्रकाली, माँ सरस्वती, भगवान शिव, भैरव आदि के छोटे - छोटे देवालय भी हैं। कल्याणी नदी के किनारे माँ अटरिया धाम की पुनर्स्थापना करने वाले राजा रुद्र चंद्र के नाम पर ही तराई के इस क्षेत्र का नाम रुद्रपुर रखा गया था। पहले यह क्षेत्र नैनीताल जिले का हिस्सा था और बाद में यह उधम सिंह नगर का जिला मुख्यालय बनाया गया।

अटरिया मंदिर का इतिहास-

अटरिया देवी मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, जो कि एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। प्राचीन में मंदिर निर्माण के बाद किसी आक्रमणकारी ने मंदिर को तोड़ दिया था और मूर्तियां पास के कुएं में डाल दी थी। सन् 1588 ईसवी में तराई का क्षेत्र रुद्ररपुर को बसाने वाले राजा रुद्र चंद के कब्जे में आया। प्रचलित जनश्रुति के अनुसार एक बार जब राजा रुद्रचन्द यहां के वनों में आखेट करने के लिये निकले तो एक स्थान पर उनके रथ का पहिया जमीन में धंस गया। सैनिकों को रथ का पहिया निकालने का आदेश दे कर राजा विश्राम के लिए एक वट वृक्ष की छाया में लेट गये और नींद आ गयी। 

उस समय उन्होंने एक स्वप्न देखा जिसमें माता भगवती ने उन्हें बताया कि जहां पर उनके रथ का पहिया धंसा है वहां पर उसके नीचे एक कुआं है और उसमें माँ की प्रतिमा दबी हुई है। नींद से जागने पर राजा ने अपने सैनिकों को उस स्थान पर उत्खनन करने का आदेश दिया और उसे खोदने के बाद उन्होंने देखा कि वहां पर एक पुराने कुएं के अवशेष थे। उसे और गहरा खोदने पर उन्हें उसमें देवी भगवती की प्रतिमा भी मिल गयी जिसके विषय में देवी ने स्वप्न में बतलाया था। 

राजा ने उसे बाहर निकलवा कर उसी स्थान पर देवी के मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें देवी की मूर्ति की स्थापना करवा दी। संयोग से जब मंदिर में देवी प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा करायी गयी उस समय चैत्र के नवरात्र चल रहे थे। तभी से प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्रों में देवी अटारी की पूजा अर्चना व पूर्णमासी को मेला लगता हैं। 

अटरिया मेला रुद्रपुर-

रुद्रपुर के माँ अटरिया धाम में हर वर्ष चैत्र नवरात्र के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मेला अत्यधिक प्राचीन होने के कारण इस दौरान मंदिर में सबसे ज्यादा भीड़ होती है। माँ का डोला मंदिर पहुंचने के साथ ही मेला प्रारंभ होता है और मां की विदाई के बाद मेला संपन्न होता है। इस तरह करीब तीन सप्ताह का यह मेला होता हैं।


उम्मीद करते है, कि आपको हमारी यें पोस्ट पसन्द आयी होगी।

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