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पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर | चम्पावत उत्तराखंड | पूण्यगिरि मंदिर | Purnagiri Mandir Champawat Uttarakhand

पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर | चम्पावत उत्तराखंड | पूण्यगिरि मंदिर | Purnagiri Mandir Champawat Uttarakhand


नमस्कार दोस्तों स्वागत है, आपका हमारे जय उत्तराखंडी समुदाय में आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड में स्थित पूर्णागिरि मंदिर के बारे में बताएंगे।
पूर्णागिरि मंदिर काली नदी के तट पर स्थित है और इसे पूण्यगिरि के रूप में भी जाना जाता है। यह भक्ति पीठ, मलकागिरि, कालीकागिरि एवं हिमलागिरि इन सभी पीठों में प्रमुख स्थान रखता है। पूर्णागिरि पर्वत के सबसे ऊंचे शीर्ष से काली नदी के विस्तार को नेपाल होते हुए देखा जा सकता है।


पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखण्ड-

माँ पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले में काली नदी के दांये किनारे पर स्थित है। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण चम्पावत ज़िले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 20 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ माँ भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। उत्तराखण्ड के जिले चम्पावत के टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की उंचाई पर यह शक्तिपीठ पूर्णागिरि मंदिर स्थित हैं।

पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास-

पूर्णागिरी मंदिर की यह मान्यता है कि जब भगवान शिव शंकर तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से माता सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे। तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर संसार को भयंकर प्रलय से बचाने के लिए माता सती के पार्थिव शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरे। 


कथा के अनुसार जंहा - जंहा देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इस प्रकार माता के कुल 108 शक्तिपीठ हैं, माता सती का नाभि अंग चम्पावत जिले के पूर्णा पर्वत पर गिरने से माँ पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना हुई तब से देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।

पौराणिक कथा पूर्णागिरी मंदिर-

पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मकुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मदेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया। सन् 1632 में कुमाऊं के राजा ज्ञान चंद के दरबार में गुजरात से पहुंचे श्रीचन्द्र तिवारी को इस देवी स्थल की महिमा स्वप्न में देखने पर उन्होंने यहा मूर्ति स्थापित कर इसे संस्थागत रूप दिया।


देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिकागिरि, हेमलागिरि व मल्लिकागिरि में मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है। आसपास जंगल और बीच में पर्वत पर विराजमान हैं, भगवती दुर्गा इसे शक्तिपीठों में गिना जाता है। इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं। चैत्र मास की नवरात्र में यहां मां के दर्शन का विशेष महत्व बढ जाता हैं। चैत्र में यंहा 90 दिनों का मेला भी लगता हैं।

पूर्णागिरि मंदिर में सिद्ध बाबा मंदिर की कथा-

पूर्णागिरी मंदिर के सिद्ध बाबा के बारे में यह कहा जाता है। कि एक साधू ने व्यर्थ रूप से माँ पूर्णागिरी के उच्च शिखर पर पहुचने की कोशिश करी तो माँ ने क्रोध में साधू को नदी के पार फेक दिया बाद में उस साधू ने माता से माफ़ी मांगी तो दयालु माँ ने इस संत को “सिद्ध बाबा” के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया। 

जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा, वो उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे कि उसकी मनोकामना पूरी होगी। कुमाऊं के अधिकतर लोग सिद्धबाबा के नाम से मोटी रोटी बना कर सिद्धबाबा को भेट स्वरुप चढाते है।

पूर्णागिरी मंदिर में स्थित झूठे का मंदिर की कहानी-

पौराणिक कथा के अनुसार यह भी उल्लेख है कि एक बार संतान विहीन सेठ को देवी ने सपने में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हे पुत्र होगा। सेठ ने माँ पूर्णागिरी के दर्शन किये और कहा कि यदि उसका पुत्र होगा तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनाएगा। मनोकामना पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के मंदिर की जगह ताम्बे के मंदिर में सोने की पॉलिश लगाकर देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा तो टुन्याश नामक स्थान पर पहुचकर वह ताम्बे के मंदिर को आगे नहीं ले जा सका था। तब सेठ को उस मंदिर को उसी स्थान में रखना पड़ा। तब से वो मंदिर पौराणिक समय से वर्तमान में झूठे का मंदिर नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में बच्चों के मुंडन संस्कार किये जाते हैं, मान्यता है कि बच्चों के यंहा मुंडन संस्कार करने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।

पूर्णागिरि मंदिर की मान्यतायें-

पूर्णागिरी मंदिर की मान्यता यह है कि देवी और उनके भक्तो के बीच एक अलिखित बंधन की साक्शी मंदिर परिसर में लगी रंगबिरंगी लाल-पीली चीरे आस्था की महिमा को बयान करती है। मनोकामना पूरी होने पर पूर्णागिरी मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने और चीर की गांठ खोलने आने की मान्यता भी है।


नवरात्रियो में पूर्णागिरी मंदिर की मान्यता यह है कि नवरात्री में देवी के दर्शन से व्यक्ति महँ पुण्य का भागिदार बनता है। देवी सप्तसती में इस बात का उल्लेख है कि नवरात्रियो में वार्षिक महापूजा के अवसर पर जो व्यक्ति देवी के महत्व की शक्ति निष्ठापूर्वक सुनेगा। वो व्यक्ति सभी बाधाओ से मुक्त होकर धन धान्य से संपन्न होगा।

पूर्णागिरी मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर मुंडन कराने पर बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है। इसलिए इसकी विशेष महत्वता है, लाखो तीर्थ यात्री इस स्थान में मुंडन करने के लिए पहुचते है। प्रसिद्ध वन्याविद एवम् आखेट प्रेमी जिम कॉर्बेट ने सन 1927 में विश्राम कर अपनी यात्रा में पूर्णागिरी के प्रकाश पुंजो को स्वयं देखकर इस देवी शक्ति के चमत्कार का देशी और विदेशी अखबारों में उल्लेख कर इस पवित्र स्थल को काफी मशहूर किया कहा जाता है कि जो भक्त सच्ची आस्था लेकर पूर्णागिरी की दरबार में आता है, मनोकामना साकार कर ही लौटता है।

उम्मीद करते है, कि आपको हमारी यें पोस्ट पसन्द आयी होगी।

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