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ओखलकांडा नैनीताल के लोकचूली लोहाखाम धाम का विशेष महत्व

ओखलकांडा नैनीताल के लोकचूली लोहाखाम धाम का विशेष महत्व


नमस्कार दोस्तों स्वागत है, आपका हमारे जय उत्तराखंडी समुदाय में आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के ओखलकांडा नैनीताल के लोकचूली लोहाखाम धाम का विशेष महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त कराएंगे।

ओखलकांडा ब्लॉक का ल्वाड़ डोबा और हरीशताल गांव धार्मिक व पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र पर्यटन के साथ ही पौराणिक व धार्मिक महत्व को भी समेटे हुए है। यहां लोकचूली लोहाखाम और लोहाखामताल धाम स्थित हैं, जिनकी पूरे ब्लॉक के लोगों में बहुत मान्यता है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस धाम में मन्नत मांगता है, उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है। 



यह मंदिर काठगोदाम से लगभग 50 किमी की दूरी पर है। यहां पर दो बहुत सुंदर झील भी हैं। जिनमें एक झील लोहाखामताल, जबकि दूसरी झील हरीशताल है। लोहाखाम ताल को क्षेत्र के लोग पवित्र कुंड मानते हैं और इसमें किये गए स्रान को गंगा स्रान के बराबर माना जाता है। दूसरी झील हरीशताल है। यह प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण हैं। 



जो भागमभाग और चकाचौंध भरी जिंदगी से बहुत अलग है। लोहाखाम ताल से लगभग 3 किमी की चढ़ाई चढ़ने के बाद ऊंची चोटी पर लोहाखाम मन्दिर स्थित है। यहां से चारों ओर की प्राकृतिक सुंदरता को करीब से देखा जा सकता है। इस स्थान से समूचे हिमालय, कैलाश पर्वत के साथ पूरी तराई भावर का दृश्य एकदम साफ दिखाई देता है। लोहाखाम ताल से लगभग 500 मीटर की दूरी में एक अन्य लोहाखाम का मंदिर स्थित है। 



जहां वैसाखी पूर्णिमा के दिन खान के बाद पुजारी द्वारा नए अनाज का भोग लोहाखाम देवता को लगाया जाता है। इसके बाद ही क्षेत्र के लोग और पुजारी नए अनाज का सेवन करते हैं। क्षेत्र के लोगों का कहना है यदि उक्त स्थल को पर्यटन विभाग द्वारा धार्मिक व ट्रैकिंग स्थल के रूप में विकसित किया जाता है तो स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही, साथ ही क्षेत्र से पलायन भी रूकेगा।



मंदिर के मुख्य पुजारी नहीं खाते तेल से बना भोजन


लोहाखाम देवता मंदिर भीमताल के मुख्य पुजारी आजीवन तेल में बना भोजन नहीं करते। इसके अलावा वह प्याज, लहसुन, मडुवा, हल जोतने से भी पूरी तरह परहेज करते हैं। वह सिर्फ अपने द्वारा बनाये गए भोजन को ही ग्रहण करते हैं। लोकचूली लोहाखाम ताल में हर वर्ष बैशाखी पूर्णिमा के पर भव्य मेले का आयोजन होता है। जिसमें कुमाउंनी सांस्कृक्तिक कार्यक्रम, छोलिया नृत्य, जागर, झोड़ा, चांचरी आदि की धूम रहती है। इसके बाद ही प्रातः काल में भक्तजनों द्वारा पवित्र कुंड में स्नान और कुंड और मन्दिर परिक्रमा के बाद ऊंची चोटी पर स्थित लोहाखाम मंदिर के दर्शन किये जाते हैं।

चौगड़ के लोग करते हैं मेले का आयोजन


भीमताल। लोहाखाम मंदिर में चौगड़ के लोग बैसाखी पूर्णिमा पर आजादी से पहले से मेले का आयोजन करते आ रहे हैं। यह मेला इस बार 21 मई से होगा। लोहाखाम मंदिर के समीप पर अंग्रेजों द्वारा लगाया गया लोहे का खाम यानी झूला आज भी मौजूद है। इस झूले को अंग्रेजों ने वहां क्यों लगाया इसका कोई प्रमाण नहीं मिले हैं पर झूला बहुत लंबा है। क्षेत्र के लोग बताते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में काफी अंग्रेज इस झील का नजारा लेने के लिये वहां आते थे। अंग्रेज लोग कई किमी पैदल चलकर यहां पहुंचते और झील का आनंद उठाते रात्रि विश्राम के लिये वहां कोठी भी बनाई थी।


!! लोहाखाम देवता की जय !!
!! गोलज्यू देवता की जय !!



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