गोल्ज्यू देवता की जन्मभूमि कहां पर है, धुमाकोट में चंपावत में या फिर नेपाल में ?
गोल्ज्यू देवता की जन्मभूमि कहां पर है, धुमाकोट में चंपावत में या फिर नेपाल में ?
नमस्कार दोस्तों क्या आपको पता है कि गोल्ज्यू देवता की जन्मभूमि कंहा पर है, धुमाकोट में चंपावत में या फिर नेपाल में चलिये जानते है।
उत्तराखंड के न्याय देवता गोल्ज्यू के जन्म से सम्बंधित विभिन्न जनश्रुतियां एवं जागर कथाएं इतनी विविधताओं को लिए हुए हैं कि ग्वेल देवता की वास्तविक जन्मभूमि निर्धारित करना आज भी बहुत कठिन है। न्याय देवता की जन्मभूमि धूमाकोट में है,चम्पावत में है या फिर नेपाल में? इस सम्बंध में भिन्न भिन्न लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। कहीं ग्वेल देवता को ग्वालियर कोट चम्पावत में राजा झालुराई का पुत्र कहा गया है तो किसी जागर कथा में उन्हें नेपाल के हालराई का पुत्र बताया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित पारम्परिक जागर कथाओं और लोकश्रुतियों में भी न्यायदेवता ग्वेल की जन्मभूमि के बारे में अनिश्चयता की स्थिति देखने में आती है। पिछले कुछ वर्षों में ग्वेल देवता विषयक जो लिखित साहित्य सामने आया है, उसमें भी जन्मभूमि के सम्बंध में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। उदाहरण के लिए मथुरादत्त बेलवाल द्वारा सन् 1981 में लिखी जागर 'बाला गोरिया' के अनुसार ग्वेल का जन्म जिस राजपरिवार में हुआ वे चम्पावत के राजा थे।
"चम्पावत राजधानी, राजा झालुराई।
अमर कहानी छयौ सुणि लिया भाई।"
किन्तु जब बेलवाल ने सन् 1998 में 'जै उत्तराखंड जै ग्वेलदेवता' पुस्तक लिखी तो अपनी धारणा बदल दी और चम्पावत के स्थान पर 'राजा ग्वेल के पिता झालुराई को 'धौली धूमाकोट' का राजा लिखा था।
"धौली धूमाकोट का राजा-राजा झालुराई,
अमर कहानी छयौ सुणि लिया भाई।"
'जै उत्तराखंड जै ग्वेलदेवता'
इतना तो स्पष्ट है कि राजा ग्वेल के जन्मस्थान के बारे में जागर कथाओं में दो मुख्य मान्यताएं प्रचलन में थी। कहीं ग्वेल की जन्मभूमि धुमाकोट माना जाता था तो कहीं उन्हें चम्पावत का राजा कहा जाता था।
'श्रीगोलू-त्रिचालिसा' के लेखक प.गोपालदत्त जोशी ने इस सम्बंध में युक्तिसंगत समाधान प्रस्तुत करते हुए बताया है कि कत्यूरी राजाओं के समय में धुमाकोट चम्पावत का ही मांडलिक राज्य था और ग्वेल के पिता और उनके पूर्वज उन दिनों चम्पावत राज्य के मांडलिक राजा रहे थे।
"सदियों से है चलती आई,
गोलु ज्यू की गाथा सुखदाई।
वंश कत्यूरियों की यह गाथा,
वर्णन करूँ नवाऊं माथा।।
चंदों से पहले चम्पावत,
था कत्यूरियों के हि मातहत।
धुमाकोट इसका एक मंडल,
तलराई राजा थे उस थल।।
लोकविदित राजा तलराई,
उनके पुत्र हुए हलराई।
हलराई के पुत्र प्रतापी,
झालु राई की कीर्ति थी व्यापी।।"
-श्रीगोलू-त्रिचालिसा,
उधर संस्कृत साहित्य के जाने माने लेखक डा.हरिनारायण दीक्षित जी ने 'श्रीग्वल्लदेवचरितम्' महाकाव्य में ग्वेलदेवता का जन्म स्थान कूर्मांचल स्थित धुमाकोट बताया है।
"पुरा कुर्मांचले पुण्ये धूमाकोटाभिधे पुरे।
हालरायाभिधो भूपो बभूव बहुविश्रुतः।।
तलरायस्य पौत्रोsसौ झालरायस्य चात्मजः।
क्रमप्राप्तं निजं राज्यं पालयामास धर्म्मवित्।।"
-श्रीग्वल्लदेवचरितम्,
कई जागर कथाओं में ग्वेल देवता की जन्मभूमि के रूप में चंपावत के अलावा नेपाल धोली धूमाकोट का भी जिक्र आता है।
"गोरिया महाजन के राजा तुमारौ नाम लिनों।
दुदाधारी कृष्ण अवतारी तुमारौ नाम छ।।
ग्वेल गोरिया भनरिया गोरिया चौरिया गोरिया।
राजवंशी देव छ जसकारी नमन का भोगी।।
नेपाल धोली धुमाकोट में तुमरो जनम।
थात बतौनि भगवान इष्ट देवता कुल देवता।।
बु बु हाल राई बाबु झालुराई माता कालिंका
अवतारी जसकारी भगवान तुमारो नाम छ।।"
अभी हाल ही में ग्वेलदेवता के इतिहास पर शोध करने वाले पत्रकार मनोज इष्टवाल ने नेपाल स्थित उक्का महल को ग्वेलदेवता की जन्मभूमि के रूप में चिह्नित करने का प्रयास किया है और नेपाल के आराध्य देव हुनैनाथ की पहचान न्यायदेवता ग्वेल के रूप में की है। उनका कहना है कि स्थानीय मान्यता के अनुसार जैसे उत्तराखंड में ग्वेलदेवता को न्याय का देवता माना जाता है वैसे ही नेपाल में हुनैनाथ भी न्याय के देवता माने जाते हैं। हुनैनाथ का वाहन भी घोड़ा है और वे भी खड्गधारी देव हैं।उनका मंदिर उक्कू गविस से एक किमी आगे है सलेती गांव में बताया जाता है।
हिमालयन डिस्कवर में 3 जून,2017 को प्रकाशित एक लेख के माध्यम से पत्रकार श्री मनोज इस्टवाल ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने गहन शोध के पश्चात न्याय देवता गोलज्यू महाराज की वास्तविक जन्मस्थली की पहचान पश्चिमी नेपाल के महाकाली आँचल में दार्चुला जिले में स्थित उक्कु महल के रूप में की है। स्थानीय मान्यता के अनुसार नेपाल का यह उक्कु महल गोरिल देवता के दादा हालराई, झालराई के वंशजों का किला माना जाता है।
मनोज इष्टवाल अपनी इस खोज का कारण बताते हुए कहते हैं कि जब उन्होंने बिंता उदयपुर के गोल्ज्यू देवता के दरबार में ग्वेल देवता के डंगरिये द्वारा उक्कू महल की बात अपनी वार्ता में रखी तभी से उन्होंने ग्वेल देवता के जन्मस्थान से सम्बंधित अपनी शोधयात्रा शुरु कर दी थी और लगभग दो बर्ष बाद वे पश्चिमी नेपाल के उक्त महाकाली स्थित दार्चुला जिले में ग्वेलदेवता के पूर्वजों की इस प्राचीन धरोहर स्वरूप उक्कू महल के खंडहरों को खोजने में सफल हो पाए।
विदित हो कि मनोज इष्टवाल ने 11 मार्च 2018 को अपने सहयोगी जीवनचन्द जोशी व दिनेश भट्ट के साथ लगभग 4.50 कि.मी. पैदल चलते हुए जौलजीवी झूला पुल पार कर उक्त उक्कू महल के खंडहरों का पता लगाया। वहां पहुंचने के बाद उन्हें विशाल आकार के शिलाखंड दिखाई दिए, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु ,महेश,विष्णु और लक्ष्मी की मूर्तियां उकेरी गई थीं।ये शिलाखंड बिल्कुल उसी आकार के बताए जाते हैं जैसे जागेश्वर मंदिर समूह और केदारनाथ मंदिर पर लगे पाषाण हैं।वहां उक्कू महल के खंडहरों में पाषाण खंडों में खुदे शिलालेख भी मिले हैं, जिनकी भाषा को आज तक नहीं पढा जा सका है।
भौगोलिक दृष्टि से हुनैनाथ वर्त्तमान में पश्चिमी नेपाल के महाकाली आँचल के ज़िला दार्चुला में एक ग्राम विकास समिति का इलाका है,जो गौरी नदी व काली नदी की सीमा पर स्थित जौलजीवि भारत के अंतर्गत आता है। यहां पर गौरी नदी व काली नदी एक दूसरे से मिलती है। कहा जाता है कि झूला घाट के पास रतवाडा व नेपाल के ज़िला बैतड़ी के सेरा ग वि स के पास आज भी वह बक्सा एक पत्थर के रूप में काली नदी में दिखाई देता है,ज़िसमें बाला गोरिया को बन्द करके बहाया गया था और वह वहीं अटक गया था। कहते हैं काली नदी में कितनी भी बाढ़ क्यूँ न आ जाये वह पत्थर कभी डूबता नहीं है। वर्त्तमान में इस स्थान की पहचान भारत के तालेश्वर नामक स्थान के पास की गई है।
पर विडम्बना यह है कि उक्कू महल के खंडहरों का नेपाल सरकार ने कभी पुरातात्त्विक सर्वेक्षण नहीं करवाया और न ही भारत के पुरातत्त्व विभाग ने ही इन ग्वेल देवता के इतिहास से जुड़े पुरातात्त्विक स्थलों के सर्वेक्षण के प्रति कोई रुचि प्रकट की। इसलिए उक्कू महल की इन मूर्तियों की ऐतिहासिकता और काल निर्धारण करना बहुत कठिन है। हालांकि मनोज इष्टवाल के अनुसार ये पाषाण शिलाखंड लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक पुराने हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में ग्वेल देवता के पूर्वज राई वंशजों के इतिहास को इतने प्राचीनकाल तक स्थापित कर पाना और भी कठिन हो जाता है।
दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि उक्कू महल के खंडहरों में ब्रह्मा,विष्णु आदि पौराणिक देवों की मूर्तियों के जो अवशेष मिले हैं,उनमें ग्वेल देवता अथवा उनके पूर्वजों झाली राई,हाली राई की न तो मूर्तियां मिलीं हैं और न ही ऐसा कोई शिलालेख ही प्राप्त हुआ है,जिससे यह पुष्टि हो सके कि यह स्थान निश्चित रूप से ग्वेल देवता के पूर्वजों से सम्बंधित स्थान रहा होगा।
किन्तु मनोज इष्टवाल द्वारा ग्वेल देवता के जन्मभूमि की इस नई खोज का स्वागत ही किया जाना चाहिए कि उन्होंने न्यायदेवता ग्वेल की जन्मभूमि की खोज की दिशा में सराहनीय प्रयास किया। पर तथ्यात्मक वास्तविकता यह है कि उनकी यह मान्यता केवल स्थानीय जनश्रुतियों पर ही आधारित प्रतीत होती है। इसके लिए पुराततात्त्विक साक्ष्यों और शिलालेखों के साक्ष्यों को जुटाने की दिशा में भी शोधकार्य करने की विशेष आवश्यकता है।
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