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छोटा कैलाश धाम , भीमताल उत्तराखंड

छोटा कैलाश धाम , भीमताल उत्तराखंड

नमस्कार दोस्तो, आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में छोटा कैलाश धाम के बारे में बताएंगे।
छोटा कैलाश धाम, उत्तराखंड के नैनीताल जिले के भीमताल ब्लॉक में पिनरों गाँव की एक पहाड़ की चोटी में स्थित है।
छोटा कैलाश धाम की हल्द्वानी से दूरी 30 किलोमीटर तक है,
छोटा कैलाश धाम पहुँचने के लिए आपको हल्द्वानी सड़क मार्ग से काठगोदाम, अमृतपुर वाली सड़क से भौर्सा होते हुए पिनरों गाँव तक पहुंचना होता है। पिनरों गाँव से 3-4 किमी की पैदल खड़ी चढ़ाई है, उसके बाद पहाड़ी के शीर्ष पर छोटा कैलाश धाम स्थित है।


छोटा कैलाश पहुँचने का पैदल रास्ता भी बेहद शांत और सुन्दर है, छोटा कैलाश धाम में कठिन चढ़ाई चढ़नी होती है, यहाँ पर पिनरों गाँव से आगे यह सड़क बानना गाँव होते हुए जंगालियागाँव के लिए जाती है, पिनरों से कठिन चढ़ाई वाली पहाड़ी छोटा कैलाश के लिए ले जाती है पिनरों भी पहाड़ी वास्तुशिल्प वाले घरों से बना हुआ गाँव है। यह मंदिर भीमताल नौकुचियाताल से सालटा गांव की दूरी 27 किलोमीटर और अमृतपुर , अमिया , कुला , बारजाला , सालटा गांव , यह से पैदल यात्रा है । अन्य पैदल रास्ता गोला नदी किनारे पर उदुवा गांव से थामधार , पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने के लिए शिवभक्तों को डोव , पिनरौं गांव के भाऊरीयाधार नामक स्थान पर लगभग चार किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी होती है।


छोटा कैलाश धाम मंदिर पहाड़ की जिस चोटी पर बना है, वह उसके इधर-उधर के पहाड़ों की सबसे ऊंची चोटी है। पिनरों से चलने के कुछ देर बाद इस रास्ते से पर्वतश्रृंखलाओं का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखाई देता है, गौला नदी और कलसा नदी की हसीन घाटियाँ भी लगातार दिखाई देती हैं, रास्ता इतना मनमोहक है कि खड़ी चढ़ाई की थकान को भी लोग भूल जाते हैं।


छोटा कैलाश धाम मंदिर के बारे में मान्यताएँ-

छोटा कैलाश धाम के बारे में मान्यता है कि सतयुग में भगवान भोलेनाथ एक बार यहाँ आये थे। अपने हिमालय भ्रमण के दौरान भगवान शिव तथा पार्वती ने इस पहाड़ी पर विश्राम किया था महादेव के यहाँ पर धूनी रमाने के कारण ही तभी से यहाँ अखण्ड धूनी जलायी जा रही है, मान्यता है कि यहाँ पहुंचकर शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है, मन्नत  पूरी होने पर श्रद्धालु यहाँ पर घंटी और चांदी का छत्र चढ़ाते हैं। छोटा कैलास में शिवरात्रि के दिन पर श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई पूजा - अर्चना से मन्नतें पूरी होती हैं । उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों से हजारों की संख्या में शिवभक्त शिवरात्रि पर एक दो दिन पहले से ही छोटा कैलास पहुंचने लगते हैं ।


छोटा कैलाश धाम के बारे में यह अन्य पौराणिक मान्यता भी है कि त्रेता युग में भगवान शंकर ने राम - रावण के युद्ध को इसी पहाड़ी से देखा था। द्वापर युग में वनवास के दौरान पांडवों ने भी भीमताल ब्लाक के पिनरौं न्याय पंचायत में स्थित इस पर्वत चोटी पर एक रात गुजारी थी। इनी मान्यताओं के चलते छोटा कैलाश में स्थित शिव मंदिर के प्रति लोगों में अपार आस्था है। शिवरात्रि पर हजारों शिवभक्त यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं । 


यहां शिवलिंग कब से मौजूद है इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है । लेकिन बुजुर्गों की मानें तो त्रेता युग में सती ( पार्वती ) द्वारा भगवान राम की परीक्षा लिए जाने पर जब भगवान शंकर ने सती को अपने बायीं ओर बैठने के अधिकार से वंचित कर दिया और सती कैलास मानसरोवर को चली गई तो भगवान शंकर राम की लीला देखने के लिए दक्षिण दिशा की ओर बढ़ गए । 


वह छोटा कैलास ( पिथौरागढ़ ) , सालम कैलास ( अल्मोड़ा ) होते हुए हैड़ाखान पहुंचे । वह यहां उज्ज्वल गांव ( उदुवा ) के सुरकोट से होते हुए पींडर गांव ( पिनरौं ) की चोटी पर जा पहुंचे । इसी चोटी से उन्होंने राम - रावण युद्ध देखा था । तभी से इस चोटी को छोटा कैलास की मान्यता मिली । किंवदंती है कि द्वापर में अपने वनवास काल में पांडवों ने इस चोटी पर एक रात बिताई थी और यह भी कि किरात रूपधारी भगवान शंकर का अर्जुन के साथ युद्ध इसी चोटी पर हुआ था।


छोटा कैलाश धाम में भोलेनाथ ने यहाँ पर जब वास किया तो उन्होंने दिव्य शक्तियों से यहाँ पर एक कुंड का भी निर्माण किया था, जिसे पार्वती कुंड कहा जाता है, बाद के कुछ वर्षों में किसी भक्त द्वारा उसे अपवित्र कर देने के कारण उसका जल सूख गया और उस कुंड तक पहुँचने वाली तीन सतत जलधाराएँ विभक्त होकर पहाड़ी के तीन छोरों पर थम गयी।


शिवरात्रि का मेला-

शिवरात्रि के दिन लगता है बड़ा मेला सावन और माघ के महीने में यहाँ भक्तों का आना जाना काफी बढ़ जाता है। शिवरात्रि के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है, इस दिन दूर - दूर से हजारों भक्त यहाँ आकर पूजा - अर्चना करते हैं।


महाशिवरात्रि की रात यहाँ पर हजारों लोग रात भर रूककर अनुष्ठान करते हैं, वे बताते हैं कि भक्तों के कुछ दल यहाँ हर महीने आते हैं और रात भर पूजा करके सुबह वापसी करते हैं।


शिवरात्रि के दिन कुछ भक्त अपने हाथ बंधवाकर रात भर धूनी के आगे खड़े होकर मन्नत मांगते हैं। इनमें से अगर किसी का हाथ स्वयं खुल जाये तो उसे धूनी के आगे से हटा दिया जाता है।

छोटा कैलाश मंदिर में पहले यहाँ शिवलिंग खुले आसमान के नीचे स्थित था। परन्तु आज यहाँ पर शिवलिंग के चारो ओर दीवार का घेरा कर दिया है, और शिवलिंग के ऊपर चांदी का छत्र और मंदिर के चारों ओर घण्टियाँ ही घण्टियाँ है। 


पार्वती कुंड का निर्माण दुबारा हो चुका है, मनरेगा के तहत 8 लाख रुपये की लागत से यहाँ पर इस कुंड का निर्माण किया जा रहा है। इस शिवरात्रि पर भक्त पार्वती कुंड के दर्शन कर रहे है।



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