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पोखु देवता मंदिर और उनकी गाथा

पोखु देवता मंदिर और उनकी गाथा


नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिलें में स्थित एक रहस्यमयी मंदिर पोखु देवता मंदिर और उनकी गाथा के बारे में बताएंगे।


पोखु देवता मंदिर- 

पोखु देवता मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिलें में नैटवाड़ गाँव में यमुना नदी की सहायक नदी टोंस नदी के किनारे स्थित हैं। नैटवाड़ गाँव सिर्फ मोरी से 12 किलोमीटर और चकराता से लगभग 69 किलोमीटर दूर पर है। पोखु देवता मंदिर, कर्ण मंदिर और दुर्योधन मंदिर, सभी तीन मंदिर एक ही क्षेत्र में हैं।

उत्तरकाशी से 160 किमी की दूरी पर हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे मोरी विकासखंड के नैटवाड़ गाँव चारों ओर से देवदार, चीड़ और पाइन के पेड़ों से घिरा हुआ हैं। जहां यह तीन मंदिर स्थित हैं, सभी 14 किलोमीटर की दूरी के भीतर हैं। नैटवाड़ गांव पहुंचने के लिए पर्यटकों को चकराता से चकराता-शिमला मार्ग पर स्थित ट्यूनी जाना होता है। इस घाटी से एक संकीर्ण रास्ता एक लोहे का पुल पर निकलता है, जो यात्रियों को पोखू देवता मंदिर ले जाता है।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नैटवाड़ गाँव में स्थित पोखू देवता का मंदिर भी न्याय के लिए प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यहां हाजिरी लगाने वाले को हमेशा तुरंत न्याय मिलता है। पोखु देवता मंदिर में शीघ्र न्याय पाने की आस में आने वाले लोगों को मंदिर के हर नियम कायदों का सख्ती से पालन करना होता है। 

स्थानीय लोग कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने की बजाए, सीधे यहीं आते हैं। उनका विश्वास है कि यहां उन्हें तुरंत न्याय मिलना है। पोखू देवता मंदिर के प्रति गांव सहित क्षेत्र के अन्य लोगों की अटूट श्रद्धा है। इन्हें इस क्षेत्र का राजा माना जाता है। क्षेत्र के प्रत्येक गांव में दरांतियों और चाकुओं के रूप में देवता की पूजा की जाती है।

पोखु देवता मंदिर की आश्चर्यजनक बात-

पोखु देवता मंदिर में एक आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मंदिर में देवता के दर्शन करना वर्जित है। मंदिर का पुजारी भी देवता की ओर पीठ करके पूजा करता है। 

यह मंदिर पोखु देवता का है। इसके प्रति गांव सहित क्षेत्र के लोगों की अटूट श्रद्धा है। इसे लोग न्याय के देवता के रूप में पूजा करते हैं। कहा जाता है कि देवता का मुंह पाताल में और कमर का ऊपर का हिस्सा धरती पर है। ये उल्टे हैं और नग्नावस्था में हैं। इस हालत में इन्हें देखना अशिष्टता है। इसलिए लोग इनकी ओर पीठ करके पूजा करते हैं।

मान्यता है कि क्षेत्र में यदि किसी भी प्रकार की विपत्ति या संकट आये तो पोखु देवता गांव के लोगों की मदद करते हैं। जून व अगस्त के माह में क्षेत्र के लोगों की ओर से भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। 

पोखु देवता को लोग न्याय के रूप में भी पूजा करते हैं। इसी विशेषताओं के साथ पोखु देवता का मंदिर एक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है जो सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। मान्यता है कि पोखु देवता को कर्ण का प्रतिनिधि और भगवान शिव का सेवक माना गया। जिनका स्वरूप डरावना और अपने अनुयायिओं के प्रति कठोर स्वभाव का था। इसी कारण क्षेत्र में चोरी व क्रूर अपराध करने से लोग आज भी डरते हैं।

पोखु देवता मंदिर की गाथा-

पोखु देवता मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि बहुत प्राचीन समय पहले इस क्षेत्र में किरिमर नामक राक्षस आतंक मचाया करता था। तो जनता की रक्षा के लिए दुर्योधन ने उससे युद्ध किया और युद्ध में किरिमर राक्षस हार गया और दुर्योधन ने उसकी गर्दन काटकर टोंस नदी में फेंक दी। 

परंतु किरिमर राक्षस का सिर नदी के पानी की बहने वाली दिशा के बजाय विपरीत दिशा में बहने लगा और उसका सिर रुपिन और सुपिन नदी के संगम में रुक गया। राजा दुर्योधन ने जब किरिमर राक्षस के सिर को रुका देखा तो उन्होंने उसे उसी स्थान में स्थापित कर दिया और उसका मंदिर बना दिया, जो कि वर्तमान समय में पोखुवीर के नाम से जाना जाता है।

पोखु देवता मंदिर से जुड़ी एक और अन्य कथा है। 
कहते हैं कि किरिमर राक्षस नहीं बल्कि वर्भुवाहन था। कृष्ण भगवान ने महाभारत के युद्ध से पहले ही उसका सिर काट दिया था। इस क्षेत्र की खासियत यह है कि यहां कई स्थानों पर कौरवों की पूजा की जाती है और इसी क्षेत्र में दुर्योधन का मंदिर भी स्थापित है व अन्य मंदिर में कर्ण की पूजा की जाती हैं।

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