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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गोल्ज्यू देव मंत्र

गोल्ज्यू देव मंत्र   ॐ नमो गौर भैरवाये च कलिंगानन्दनाय च श्री बाला गौरिया च झालूराईसुताई च शत्रु नाशकाय च पारित्राणाय च महान्यायाधीशे च श्री ग्वेल देवाय नमः जय गोल्ज्यू देवता।

शिव समा रहे भजन लिरिक्स | बाबा हंसराज रघुवंशी

शिव समा रहे भजन लिरिक्स |बाबा हंसराज रघुवंशी प्रोडूसड बी भोलेनाथ सॉन्ग : शिव समा रहे सिंगर/कम्पोज़र : हंसराज रघुवंशी ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, शिव समा रहे मुझमें, और मैं शून्य हो रहा हूँ, शिव समा रहे मुझमें, और मैं शून्य हो रहा हूँ, क्रोध को, लोभ को, क्रोध को, लोभ को, मैं भस्म कर रहा हूँ, शिव समा रहे मुझमें, और मैं शून्य हो रहा हूँ,                        ॐ नमः शिवाय, शिव समा रहे मुझमें, और मैं शून्य हो रहा हूँ,                        ॐ नमः शिवाय, ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगं निर्मलभासित शोभित लिंगम् । जन्मज दुःख विनाशक लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम्  ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगं निर्मलभासित शोभित लिंगम् । जन्मज दुःख विनाशक लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम्  तेरी बनाई दुनिया में कोई तुझसा मिला नही, मैं तो भटका दरबदर कोई किनारा मिला नही, जितना पास तुझको पाया उतना खुद से दूर जा रहा हूँ, शिव समा रहे मुझमें, और मैं शून्य हो रहा हूँ,       ...

उत्तराखंड का मिनी जापान

उत्तराखंड का मिनी जापान नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में बताने जा रहे है उत्तराखंड के मिनी जापान कहे जाने वाले गाँव के बारे में उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले की प्रसिद्ध 11 गाँव हिंदाव क्षेत्र में से हिंदाव पट्टी के दो गांवो बगर और सरपोली गाँव को ही लोग मिनी जापान कहते है। बगर गाँव में 80 परिवार रहते है। यहाँ से 15 युवा जापान में नौकरी करते है, और इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया,सऊदी अरब,अमेरिका, कनाडा और स्पेन सहित कई देशों में रहते है। सरपोली गाँव को मिनी जापान कहा जाता है। इसके आस पास माल गाँव और चटोली है। इस गाँव में बड़ी संख्या में युवा विदेश में नौकरी कर रहे है। सरपोली गाँव से सबसे पहले युवा जापान और कई अन्य देशों में गए। उसके बाद तो जापान जाने का सिलसिला चलते रहा। पिछले 40 सालो से इस इलाके के युवा जापान जा रहे है। बगर और सरपोली गांव टिहरी क्व भिलंगना ब्लॉक में स्थित है जो जिले का सीमांत ब्लॉक है और पहले इस इलाके में अशिक्षा बहुत थी। इस इलाके के ज्यादातर युवा नौकरी के सिलसिले में मुंबई और दिल्ली का रुख करते है और सभी होटल के क्षेत्र में ही कार्य करते है। मुम्बई से धीरे ...

चिरबटिया की खूबसूरती जो कि है लाखों में एक |

चिरबटिया की खूबसूरती जो कि है लाखों में एक  नमस्कार दोस्तो आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में चिरबटिया एक खूबसूरत गाँव के बारे में बताएंगे जो कि उत्तराखंड में है। चिरबटिया उत्तराखंड के टिहरी और रुद्रप्रयाग के बॉर्डर पर बसा एक खूबसूरत गाँव है, जो कि समुद्र तल से 2287 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। ग्राम सभा लुठियाग का चिरबटिया एक तोक है जो 1962 में सड़क आने के बाद काफी प्रचलित हो गया। चिरबटिया गाँव में उत्तराखंड वानिकी एवं उद्यानिकी विवि का कृषि महाविद्यालय भी स्थापित किया गया है। देहरादून से इसकी दूरी 185 किमी है। और 48 किमी रुद्रप्रयाग से है, चार धाम यात्रा गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा के बाद श्रद्धालु चिरबटिया गाँव होते हुए केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम जाते है। चिरबटिया गाँव रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लॉक में स्थित है।चिरबटिया को राज्य सरकार ने 13 डिस्ट्रिक्ट 13 डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने की तैयारी की है।इसके लिए यहाँ पर एमपी थियेटर,व्यू पॉइंट,सहित कई कार्य किए जाने है, यहाँ पर माउंटेन बाइकिंग,ट्रैकिंग, इको हट्स, इग्लू हट,बर्ड वाचिंग की अपार संभावनाएं है। चिरबटिया गाँव से होते हु...

नंदीकुंड का रहस्य चमोली उत्तराखंड

नंदीकुंड का रहस्य चमोली उत्तराखंड नमस्कार दोस्तो आज हम बात कर रहें हैं, नंदीकुंड के रहस्य के बारे में जो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में हैं। नंदीकुंड द्रोणागिरी गाँव से 4 किमी की दूरी पर स्थित है, यह एक सुंदर ग्लेशियर झील है। जो कि समुन्द्र तल से 14 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। नंदीकुंड नंदीकुंड से गाँव के लोगो की बहुत आस्था जुड़ी हुई है। नंदीकुंड ट्रेक पर आपको कई मखमली बुग्याल मिलते है, जो कि पैरो में बहुत ही मुलायम लगते है। सबसे पहले द्रोणागिरी से आगे आपको भोजपत्र और बुरांश की छोटी प्रजाति के पेड़ दिखाई देंगे उसके बाद पेड़ों की लाइन खत्म हो जाती है। और बरसाती मौसम में आपको यंहा रंग बिरंगे फूल और हर तरफ आपको हरियाली ही हरियाली दिखाई देगी।  नंदीकुंड झील के पास आपको राड़ू डूंगा, कानगौर, हाथगैर और फिर नंदीकुंड बुग्याल पड़ता है। इस नंदीकुंड कि एक पौराणिक कथा भी है, पौराणिक मान्यता के अनुसार इस कुंड के पास ही माँ पार्वती ने महिसासुर से बचने के लिए इस नंदीकुंड में छुप गयी थी। जिस कारण नंदीकुंड का वह हिस्सा आज भी गर्म रहता है। और फिर इसी स्थान पर माँ पार्वती ने महिसासुर का वध किया था। ...

नाग देवता का एक ऐसा अद्भुत मंदिर जंहा भूकम्प से भी मंदिर पर नहीं पड़ता कोई फर्क।

नाग देवता का एक ऐसा अद्भुत मंदिर जंहा भूकम्प से भी मंदिर पर नहीं पड़ता कोई फर्क। नमस्कार दोस्तो तो हम आज बात कर रहे है, नाग देवता के एक ऐसे मंदिर की जिस मंदिर पर भुकम्प का कोई फ़र्क नहीं होता। नाग देवता का यह मंदिर उत्तराखंड में स्थित है। उत्तराखंड के देहरादून जिले से करीब 65 किमी और ओतड़ गांव थत्यूड़ से 8 किमी दूरी पर स्थित है। गाँव में प्राचीन नाग देवता का मंदिर है, जो कि बहुत ही सुंदर है। मंदिर का वास्तुशिल्प देखने लायक है, नाग देवता का यह मंदिर तीन मंजिला है। और इसे पुराने जबानें के ढाँचे के आकार में लकड़ी और पत्थर से निर्मित किया गया है। नाग देवता के इस मंदिर की यह ख़ासियत है कि इसको बड़े से बड़ा भूकम्प आ जाने से भी कुछ नुकसान नहीं हो सकता है। क्योंकि इस मंदिर को बनाया ही इस आकीर्ति से हैं जो कि कोई से भी भूकम्प को सहन कर लेगा। ओतड़ गाँव से नागटिब्बा करीब 8 किमी की दूरी पर स्थित है। नाग देवता के मंदिर में अप्रैल और अगस्त के महीने में पूजा अर्चना होती है।  जय हो नाग देवता की।

भारत में एक ऐसी जगह जंहा आज भी नही की जाती हनुमान जी की पूजा।

भारत में एक ऐसी जगह जंहा आज भी नही की जाती हनुमान जी की पूजा। नमस्कार दोस्तो आज हम बात कर रहे है, भारत में स्थित उत्तराखंड की एक ऐसी जगह के बारे में जंहा आज भी भगवान हनुमान जी की पूजा नही होती है। हम सब जानते है कि हनुमान जी प्रमुख आराध्य देवों में से एक है, और जंहा-जंहा भारतीय लोग रहते है, वंहा वंहा उनकी पूजा की जाती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि हमारे ही देश में एक ऐसी जगह है जंहा भगवान हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती है, यंहा तक कि वंहा हनुमान जी का कोई मंदिर तक नहीं है। ऐसा इसलिये क्योंकि यंहा के रहवासी हनुमान जी से आज तक नाराज है। यह जगह है, उत्तराखंड में स्थित द्रोणागिरि गांव। द्रोणागिरि गांव उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ प्रखण्ड में जोशीमठ नीति मार्ग पर है। यह गांव लगभग 12000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां के लोगों का मानना है कि हनुमान जी जिस पर्वत को संजीवनी बूटी के लिए उठाकर ले गए थे, वह यहीं स्थित था। चूंकि द्रोणागिरि के लोग उस पर्वत की पूजा करते थे, इसलिए वे हनुमानजी द्वारा पर्वत उठाकर ले जाने से नाराज हो गए। यही कारण है कि आज भी यहां हनुमानजी की पूजा नहीं ह...