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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उत्तराखंड रंगमंच के इतिहास की जानकारी

उत्तराखंड रंगमंच के इतिहास की जानकारी नमस्कार दोस्तों आज हम आपको जय उत्तराखंडी की इस पोस्ट में उत्तराखंड रंगमंच के इतिहास की जानकारी के बारे बतायेंगे। उत्तराखंड रंगमंच के इतिहास की जानकारी कुछ इस प्रकार है, रंगमंच यात्रा पर उत्तराखंड की रंगमंच यात्रा बहुत ही रोचक हैं। इतनी रोचक और संघर्ष भरी यह यात्रा। कई पड़ावों से गुजरती हुई। कई खट्टे - मीठे अनुभव को अपनी परंपरागत नाट्य शैलियों को जीवित रखने की जद्दोजहद। संसाधनों के अभाव में किसी तरह नाटक विधा को बचाये रखने का संकट। आज से कुछ साल पहले 1917 में टिहरी में भवानीदत्त उनियाल ने जब पहली नाट्य संस्था शैमियर ड्रामेटिक क्लब ' की स्थापना की थी तो उन्हें भी यह आभास नहीं होगा कि यह यात्रा कितने झंझावतों से गुजरेगी। खैर , बहुत उपलब्धियों भरी रही है यह यात्रा। इसे जानने - समझने की कोशिश की है।  ' अभिव्यक्ति कार्यशाला ने ' उत्तराखंड रंगमंच शताब्दी नाट्योत्सव ' के समापन पर हम देखेंगे उत्तराखंड रंगमंच के विभिन्न पहलुओं को समझेंगे उत्तराखंड में रंगमंच के इतिहास को देखेंगे उत्तराखंड और दिल्ली की नाट्य संस्थाओं द्वारा मंचति छह नाटक। हम...

कलबिष्ट देवता की कहानी

कलबिष्ट देवता की कहानी नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के भूतांगी देवता कलबिष्ट देवता के बारे में बतायेंगे। कलबिष्ट देवता उत्तराखंड के भूतांगी देवता में से एक है, जिन्हें पीड़ितों का सहायक देवता माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार कलबिष्ट देवता का जन्म कुमाऊँ के बिनसर के निकटवर्ती गाँव कोट्यूड़ा में हुआ था। श्री बद्रीदत्त पांडेय जी की पुस्तक कुमाऊँ का इतिहास में उनके पिताजी का नाम केशव बिष्ट था तथा उनकी माता का नाम दुर्पाता था और कलबिष्ट देवता का नाम  श्री कल्याण सिंह बिष्ट था। कलबिष्ट देवता मानव योनि में वीर रंगीले जवान थे वह राजपूत होने के बावजूद भी ग्वाले का काम करते थे। वह बिनसर के जंगलों में गाय व भैंस चराने का काम करते थे, लोकगाथा के अनुसार कलबिष्ट (कलुवा) प्रतिदिन बिनसर में सिद्ध गोपाली नाथ नामक व्यक्ति के वंहा दूध देने जाते थे। जिनके पड़ोस में श्री कृष्ण पांडेय नामक व्यक्ति जो राजा का दरबारी था, उसका भी घर था कलबिष्ट (कलुवा) का वहा भी आना जाना था। श्री कृष्ण पांडेय का किसी नौलखिया पांडेय से बैर भाव था, श्री कृष्ण पांडेय व कलबिष्ट (कलुवा) के बी...

धानाचूली गाँव कुमाऊँ उत्तराखंड

धानाचूली गाँव कुमाऊँ उत्तराखंड नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका जय उत्तराखंडी संचार में आज हम आपको जय उत्तराखंडी की इस पोस्ट में कुमाऊँ में स्थित धानाचूली गाँव की खूबसूरती से रूबरू करायेंगे। धानाचूली गाँव उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में नैनीताल जिले में स्थित है। उत्तराखंड के कुमाँऊ मंडल में यू तो बहुत से हिल स्टेशन है जहाँ बड़ी संख्या में सैलानी हर साल घूमने जाते है। ऐसा ही एक हिल स्टेशन नैनीताल में एक गाँव धनाचूली पिछले कुछ वर्षों में सैलानियों को काफी पसन्द आ रहा है। धानाचूली गाँव में सेब के बागानों, ठंडी आबोहवा और हिमालय की 180 डिग्री की रेंज आपको को मंत्रमुग्ध कर देती है, नैनीताल जिले मुख्यालय से धनाचूली गाँव करीब 46 किमी की दूरी पर बसा है। जंहा घने जंगलों से होते हुए सेब के बगीचों में स्थित धनाचूली गाँव एक बेहतरीन पर्यटक स्थल है। धनाचूली गाँव की आबोहवा रामगढ़ और मुक्तेश्वर जैसी है, स्थानीय लोग धनाचूली को मिनी यूरोप कहते है। केवल प्राकृतिक सौंदर्य ही नही बल्कि कुमाऊँ की सांस्कृतिक विरासत की झलक भी यहाँ दिखाई देती है। गाँव में मकान दूर दूर बनाये गए है। मकानों में लकड़ियों प...

एड़ी देवता की कहानी

एड़ी देवता की कहानी नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में एड़ी देवता की कहानी के बारे में बतायेंगे। उत्तराखंड के कुमाऊँ के जमींदारो में एक जाति एड़ी या एडी है, इस जाति में एक मनुष्य बड़ा बलवान अकस्मात बलि हो गया। उसको शिकार खेलने का बहुत शौक था जब वो मरा भूत हो गया और भटकने लगा बच्चों और स्त्रियों में चिपटने लगा। और उनके बदन में नाचने लगा तब कहने लगा वो एड़ी है। उसको हलवा, पूरी, बकरा चड़ाके पूजा जाए तो वह बच्चों और स्त्रियों को छोड़ देगा। इस प्रकार लोग एड़ी को एड़ी देवता के रूप में पूजने लगे। एड़ी देवता संबंधित लोकगीतों के अनुसार इनका मूलस्थान ब्यानधुरा नामक पर्वत शिखर पर है, जो कि चम्पावत जिले में स्थित इनका मंदिर है, मंदिर में ना ही कोई छत और कलश है केवल त्रिशूल और धनुष बाणो के ढेर है, एड़ी मुख्य रूप से कुमाऊँ में पशु पालकों का देवता हैं। कुमाऊँ में प्रचलित धार्मिक गाथाओं के अनुसार एड़ी देवता एक अल्हड़ प्रवित्ति के आखेड़ प्रिय देवता है। जो आज भी शिकार के लिए धनुष बाण लेकर अपने कुत्तों सहित पर्वतों चोटी में घूमते है। मानव रूप में इनका नाम त्युना तथा इनके भाई का नाम ब्यूना था। ल...

श्री गोल्ज्यू चालीसा

श्री गोल्ज्यू चालीसा दोहा- बुद्धिहीन हूँ नाथ मैं, करो बुद्धि का दान। सत्य न्याय के धाम तुम, हे गोलू भगवान।। जय काली के वीर सुत, हे गोलू भगवान। सुमिरन करने मात्र से, कटते कष्ट महान।। जप कर तेरे नाम को, खुले सुखों के द्वार। जय जय न्याय गौरिया नमन करे स्वीकार।। चौपाई- जय जय ग्वेल महाबलवाना। हम पर कृपा करो भगवाना।। न्याय सत्य के तुम अवतारा। दुखियों का दुख हरते सारा।। द्वार पे आके जो भी पुकारे। मिट जाते पल में दुख सारे।। तुम जैसा नहीं कोई दूजा। पुनित होके भी बिन सेवा पूजा।। शरण में आये नाथ तिहारी। रक्षा करना हे अवतारी।। माँ की सौत थी अत्याचारी। तुमको कष्ट दिये अतिभारी।। झाड़ी में तुमको गिरवाया। विविध भांतिथा तुम्हे सताया।। नदी मध्य जल में डुबवाया। फिर भी मार तुम्हें नहीं पाया।। सरल  हृदय  था धेवरहे का। हरिपद रति बहुनिगुनविवेका।। भाना नाम सकल जग जाना। जल में देख बाल भगवाना।। मन प्रसन्न तन कुलकित भारी। बोला जय हे नाथ तुम्हारी।। कर गयी बालक गोद उठायो। हृदय लगा किहीं अति सुख पायो।। मन प्रसन्न मुख वचन न आवा। मन हूँ महानिधि धेवर पावा।। उरततेहि शिशु द्रिह ले आयो। नाम गौरिया तब रखवा...

उत्तराखंड का लोकपर्व त्यौहार फूल देई क्यों मनाया जाता हैं।

उत्तराखंड का लोकपर्व त्यौहार फूल देई क्यों मनाया जाता हैं। नमस्कार दोस्तों आज हम बात कर रहे है, उत्तराखंड के लोकपर्व त्यौहार फूल देई को क्यों मनाया जाता है। उत्तराखंड में फूल देई त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन में मनाया जाता है। फूल देई त्यौहार हमारी प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करता है, फूल देई त्यौहार सर्दियों के मौसम जब जाने लगते है और गर्मियों के दिन आने लगते है।  ये इन दोनों के बीच में यानि चैत के महीने की संक्रांति को, जब पहाड़ो से हिम पिघलने लगता है, और उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं और प्योली, बुरांश, आड़ू, खुमानी, पुलम और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल खिलने लगते है। तब नए साल का, नई ऋतुओं का, नए फूलों के आने का संदेश लाने वाला ये त्योहार उत्तराखंड में मनाया जाता है। फूल देई त्यौहार से उत्तराखंड का हिन्दू नववर्ष भी शुरू हो जाता है, और यह त्यौहार वैसे छोटी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है। फूल देई छम्मा देई वाले दिन देली द्वार भर भकार गीत गाते हुए बच्चें तमाम इलाकों में फूल देई का पर्व उल्लास से मनाते है, बच्चें फूल और ...

श्री साईबाबा की आरती

श्री साईबाबा की आरती जय गुरु साई प्रभु , ॐ जय गुरु साई प्रभु !  सत्चित् आनंद रूपा ( 2 ) तुझको मैं बंदू ।   ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥               पतितपावन देव , करुणासागर तू , गुरु ( 2 ) ।  करुणामय तुझ दृष्टि ( 2 ) मिले मुक्ति सबको ।  ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥  किये हैं कार्य अनेक , भक्तजनों के लिये , गुरु ( 2 )  ब्रह्मानंद म्हाले मानव - पंखेरा ।  ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥  तेरे अमी लोचनिये से बरसे ब्रह्मसुधा , गुरु ( 2 )  दृष्टि दैवी मिले भवसिंधु तरने ।  ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥  तोड़ी ग्रंथि अनेक ज्ञान के दान दिये , गुरु ( 2 )  मुझ अंतर से प्रगटे सद्गुरु साई हरि ।  ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥  तू ही विरंचीनाथ , तू ही सृष्टिकर्ता , गुरु ( 2 )  तू ही शंकरसंहता तू ही विश्वंभर्ता ।  ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥  विध विध रूप से नाथ , दर्शन तूने दिये , गुरु ( 2 )  ज्ञान प्रकाश बाबा  तिमिर हर लिये । ॐ जय गुरु साई प्रभु०॥ 

छोटा कैलाश धाम , भीमताल उत्तराखंड

छोटा कैलाश धाम , भीमताल उत्तराखंड नमस्कार दोस्तो, आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में छोटा कैलाश धाम के बारे में बताएंगे। छोटा कैलाश धाम, उत्तराखंड के नैनीताल जिले के भीमताल ब्लॉक में पिनरों गाँव की एक पहाड़ की चोटी में स्थित है। छोटा कैलाश धाम की हल्द्वानी से दूरी 30 किलोमीटर तक है, छोटा कैलाश धाम पहुँचने के लिए आपको हल्द्वानी सड़क मार्ग से काठगोदाम, अमृतपुर वाली सड़क से भौर्सा होते हुए पिनरों गाँव तक पहुंचना होता है। पिनरों गाँव से 3-4 किमी की पैदल खड़ी चढ़ाई है, उसके बाद पहाड़ी के शीर्ष पर छोटा कैलाश धाम स्थित है। छोटा कैलाश पहुँचने का पैदल रास्ता भी बेहद शांत और सुन्दर है, छोटा कैलाश धाम में कठिन चढ़ाई चढ़नी होती है, यहाँ पर पिनरों गाँव से आगे यह सड़क बानना गाँव होते हुए जंगालियागाँव के लिए जाती है, पिनरों से कठिन चढ़ाई वाली पहाड़ी छोटा कैलाश के लिए ले जाती है पिनरों भी पहाड़ी वास्तुशिल्प वाले घरों से बना हुआ गाँव है। यह मंदिर भीमताल नौकुचियाताल से सालटा गांव की दूरी 27 किलोमीटर और अमृतपुर , अमिया , कुला , बारजाला , सालटा गांव , यह से पैदल यात्रा है । अन्य पैदल रास्ता गोला नदी कि...

आरती साई बाबा की

आरती साई बाबा की ( चाल : आरती श्रीरामायणजी की ) आरती श्रीसाई गुरुवर की ।  परमानन्द सदा सुरवर की ॥ धु ० ॥  जा की कृपा विपुल सुखकारी ।  दुःख , शोक , संकट , भयहारी ॥1 ॥  शिरडी में अवतार रचाया ।  चमत्कार से तत्त्व दिखाया ॥2 ॥  कितने भक्त शरण में आये ।  वे सुखशांति चिरंतन पाये ॥ ३ ॥  भाव धरै जो मन में जैसा ,  पावत अनुभव वो ही वैसा ॥4 ॥  गुरु की उदी लगावे तनको ।  समाधान लाभत उस मन को ॥5 ॥  साई नाम सदा जो गावे ।  सो फल जग में शाश्वत पावे ॥6 ॥  गुरुवासर करि पूजा - सेवा ।  उस पर कृपा करत गुरुदेवा ॥7 ॥  राम , कृष्ण , हनुमान रूप में ।  दे दर्शन , ' जानत जो मन में ॥8 ॥  विविध धर्म के सेवक आते ।  दर्शन कर इच्छित फल पाते ॥9 ॥  जै बोलो साईबाबा की ।  जै बोलो अवधूतगुरु की ॥ 10 ॥  ' साईदास ' आरति को गावै  घर में बसि सुख , मंगल पावे ॥ 11 ॥

शिवरात्रि का महत्व और शिव अवतरण का आधार

शिवरात्रि का महत्व और शिव अवतरण का आधार आध्यात्मिक अर्थ में ' रात्रि ' शब्द घोर कलियुग का प्रतीक है।  आज संसार में चारों ओर चिन्ता , भय और निराशा का वातावरण है।  मनुष्य विकारों की अग्नि में तप रहे हैं।  प्राणी मात्र पर दुखों और प्राकृतिक आपदाओं का पहाड़ टूट रहा है।  गीता में लिखे धर्मग्लानी के सभी चिन्ह दिखाई दे रहे हैं। महापरिवर्तन की पूरी तैयारी हो चुकी है। इसी समय परमात्मा शिव एक साधारण तन में अवतरित होकर नई सृष्टि की स्थापना का महान कार्य कर रहे हैं।  शिवरात्रि पर्व परमात्मा के इस पहान कर्तव्य कायादगार पर्व है। परमपिता परमात्मा शिव का संक्षिप्त परिचय परमात्मा का स्व उद्घटित नाम शिव है जिसका अर्थ है कल्याणकारी।  वे सृष्टि की सभी आत्माओं के परमपिता , परमशिक्षक एवं परमसतगुरु हैं।  ज्योतिस्वरूप होने के कारण उन्हें निराकार कहा जाता है। वे सूर्य , चंद्र , तारागण से पार ब्रह्म तत्व में निवास करते हैं।  ब्रह्मा , विष्णु और शंकर द्वारा तीन दिव्य कर्त्तव्य करते हैं इसलिए उन्हें त्रिमूर्ति शिव कहते हैं।  वे सृष्टि के आदि , मध्य , अंत को जानने ...

न्याय देवता श्री गोल्ज्यू ( गोलू ) कथा

न्याय देवता श्री गोल्ज्यू ( गोलू ) कथा ।। ॐ श्री गोल्ज्यू देवाय नमः ।।  ।। ॐ श्री गोल्ज्यू कथा ।।  यह कथा उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले की है । चम्पावत का प्राचीन नाम कुंम हैं । काली नदी होने के कारण इसे कुंमु काली भी कहते है । कुंमु में उस वक्त शूरवीर शासके राजा तलरायी की राजधानी धूमागढ़ श्री राजा तलरायी ने प्रजा के हित में अनेक कार्य किये थे । राज तलरयी ने प्रजा की सुविधा के लिए कई धर्मशालाओं , मंदिरों और पानी पीने के लिये प्याऊ का निर्माण कराया था । राजा तलरायी ईश्वर के परम भक्त थे । प्रतिदिन सुबह उठकर पूजा - पाठ एवं दान - पूण्य किया करते थे । ईश्वर की कृपा से राजा तलरायी को पुत्र रल प्राप्ति हुई जिसका नाम राजकुमार हलरायी रखा गया ।  राजकुमार हलरायी ने बड़े होने पर शासन का कार्य भार संभाला एवं अनेक धर्मकार्य किये । राजा हलरावी का विवाह हुआ और रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया , जिसका नाम राजकुमार झलरायी रखा गया । राकुमार झलरायी की आयु , विद्या अर्जित करने की हुई तो वह अन्य बालकों के साथ साहित्य लेखन और खेलकूदं की शिक्षा प्राप्त करने लगे , साथ ही राज - काज और युद्ध की शिक्षा भी...