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जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महासू देवता मंदिर और उनकी कहानी

महासू देवता मंदिर और उनकी कहानी नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के हनोल में स्थित महासू देवता मंदिर और उनकी कथा के बारे में बताएंगे। महासू देवता मंदिर- महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में त्यूनी-मोरी रोड के नजदीक व चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। यह मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर और मसूरी से 156 किलोमीटर दूर स्थित हैं।  महासू देवता मंदिर उत्तराखंड की प्रकृति की गोद में बसा एक पौराणिक व प्रसिद्ध मंदिर हैं। मान्यता है कि महासू देवता मंदिर में जो भी कोई भक्त सच्चे मन से कुछ भी मांगता है तो महासू देवता उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जाता है। मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए यह मंदिर बहुत प्राचीन व प्रसिद्ध हैं। महासू देवता मंदिर में महासू देवता की पूजा की जाती हैं, जो कि शिवशंकर भगवान के अवतार माने जाते हैं। 'महासू देवता' एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द 'महाशिव' का अपभ्रंश ...

कैंची धाम, बाबा नीब करौरी आश्रम

कैंची धाम, बाबा नीब करौरी आश्रम नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड में स्थित कैंची धाम, बाबा नीब करौरी आश्रम के बारे में बताएंगे। कैंची धाम मंदिर- कैंची धाम मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के भीमताल भवाली से 9 किलोमीटर की दूरी में कैंची धाम आश्रम स्थित हैं। और अल्मोड़ा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। कैंची धाम मंदिर एक तीर्थ स्थल है, जो बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम हैं। हर साल 15 जून को यहां पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस स्थान का नाम कैंची मोटर मार्ग के दो तीव्र मोडों के कारण रखा गया है। कैंची धाम एक हनुमान मंदिर और आश्रम है, जिसे 1960 के दशक में एक महान संत नीम करोली बाबा द्वारा स्थापित किया गया था। यह एक पवित्र मंदिर है जो पहाड़ियों और पेड़ों से घिरा हुआ है। और इसके अलावा यहां बहने वाली नदी है। यहां आप आश्रम में हनुमान जी की महान शक्ति और उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं। इस स्थान को प्रसिद्ध नीब करौरी बाबा के आश्रम के कारण पहचान मिली है।  दर्शनीय स्थान इस स्थान की...

कर्णप्रयाग उत्तराखंड

कर्णप्रयाग उत्तराखंड नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड में स्थित कर्णप्रयाग के बारे में बताएंगे। कर्णप्रयाग उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में एक शहर हैं। कर्णप्रयाग पंच प्रयागों में से एक प्रयाग हैं। कर्णप्रयाग वह स्थान है, जंहा अलकनंदा नदी से पिंडर नदी जुड़ती हैं। नन्दा देवी पर्वत श्रृंखला के नीचे से पिंडर ग्लेशियर स्रोत निकलता हैं। महाकाव्य महाभारत के अनुसार कर्ण ने यहां तपस्या की थी। कर्ण के पिता सूर्य देवता ने उन्हें अविनाशी शक्तिया कवच और कुंडल अपनी सुरक्षा के लिए प्रदान किये। कर्ण के नाम से संगम का नाम व्युत्पन्न हुआ हैं। कर्णप्रयाग शहर को 'महाभारत के कर्ण के शहर' के रूप में भी जाना जाता है। यह उत्तराखंड गढ़वाल क्षेत्र को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र से एनएच 109 के माध्यम से जोड़ने के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय की यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद ने भी अपने गुरुओं के साथ यहां ध्यान लगाया था। अलकनंदा नदी और पिंडारी नदी के संगम पर स्थित, कर्णप्रयाग पंच प्रयाग या अलकनंदा नदी के 'पांच संगम' मे...

पोखु देवता मंदिर और उनकी गाथा

पोखु देवता मंदिर और उनकी गाथा नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिलें में स्थित एक रहस्यमयी मंदिर पोखु देवता मंदिर और उनकी गाथा के बारे में बताएंगे। पोखु देवता मंदिर-  पोखु देवता मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिलें में नैटवाड़ गाँव में यमुना नदी की सहायक नदी टोंस नदी के किनारे स्थित हैं। नैटवाड़ गाँव सिर्फ मोरी से 12 किलोमीटर और चकराता से लगभग 69 किलोमीटर दूर पर है। पोखु देवता मंदिर, कर्ण मंदिर और दुर्योधन मंदिर, सभी तीन मंदिर एक ही क्षेत्र में हैं। उत्तरकाशी से 160 किमी की दूरी पर हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे मोरी विकासखंड के नैटवाड़ गाँव चारों ओर से देवदार, चीड़ और पाइन के पेड़ों से घिरा हुआ हैं। जहां यह तीन मंदिर स्थित हैं, सभी 14 किलोमीटर की दूरी के भीतर हैं। नैटवाड़ गांव पहुंचने के लिए पर्यटकों को चकराता से चकराता-शिमला मार्ग पर स्थित ट्यूनी जाना होता है। इस घाटी से एक संकीर्ण रास्ता एक लोहे का पुल पर निकलता है, जो यात्रियों को पोखू देवता मंदिर ले जाता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नैटवाड़ गाँव में स्थित पोखू देवता का मंदिर भी न्य...

उत्तराखंड में गंगा दशहरा द्वार पत्रक क्यों मनाया जाता हैं ?

उत्तराखंड में गंगा दशहरा द्वार पत्रक क्यों मनाया जाता हैं ? नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड में गंगा दशहरा द्वार पत्रक क्यों मनाया जाता हैं। बतायेंगे। उत्तराखंड के कुमाऊंनी व गढ़वाली मंडल में त्योहारों की अपनी लोकप्रियता और महत्व हैं। उत्तराखंड में लगभग हर महीने में कुछ न कुछ त्योहार तो होते रहते है। इन त्योहारों में कुछ न कुछ पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है। इन्हीं में से एक त्योहार है गंगा दशहरा द्वार पत्रक। जो पुरानी परम्परा एवं कुमाऊंनी संस्कृति से जुड़ी हुई है। गंगादशहरा पर्व के दिन दरवाजों के उपर गंगा दशहरा पत्रक लगाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था।  गंगा माँ के पृथ्वी पर आने की खुशी और अग्नि व भय से बचने के लिए गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस गंगा दशहरा पत्रक को देने कुल ब्रह्माण आते है। गंगा दशहरा की प्रतिष्ठा कर अपने यजमान को देते है। यह पर्व जेष्ठ मास की दशमी शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है। पंडित घर-घर जाकर गंगा दशहरा पत्र बाटते है। आज के आधुनिक युग में यह गंगा दशहरा पत्र बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। ल...

उत्तराखंड के तीन मंडल कौन - कौन से हैं ?

उत्तराखंड के तीन मंडल कौन - कौन से हैं ? 1. कुमाऊं मंडल ( 1854 ) 2. गढ़वाल मंडल ( 1969 )  3. गैरसैंण मंडल ( 2021 ) 1. कुमाऊं मंडल ( 1854 )- कुमाऊँ मंडल की स्थापना 1854 में हुई थी। और कुमाऊँ मंडल में 6 जिले आते थे लेकिन अब 2021 में उत्तराखंड तीन मंडलों में बंट चुका हैं। अब कुमाऊँ मंडल में 4 जिले आते हैं- 1. नैनीताल 2. पिथौरागढ़ 3. चंपावत 4. उधम सिंह नगर 2. गढ़वाल मंडल ( 1969 )- गढ़वाल मंडल की स्थापना 1969 में हुई थी। और गढ़वाल मंडल में पहले 7 जिले आते थे। लेकिन अब 2021 में उत्तराखंड के तीन मंडल होने के बाद अब गढ़वाल मंडल में 5 जिले आते हैं- 1. उत्तरकाशी   2. देहरादून   3. पौड़ी गढ़वाल  4. टिहरी गढ़वाल 5. हरिद्वार 3. गैरसैंण मंडल ( 2021 )- गैरसैंण मंडल की स्थापना 2021 में हुई हैं। कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल में से 2 - 2 जिलें निकालकर गैरसैंण मंडल को 4 जिलों वाला उत्तराखंड का तीसरा मण्डल बना दिया गया हैं। और गैरसैंण अब उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी बन चुकी हैं। गैरसैंण मंडल के चार जिलें- 1. रुद्रप्रयाग 2. चमोली 3....

उत्तराखंड मल्टी-करोड़ साइबर घोटाला STF स्कैनर के तहत क्रिप्टो-मुद्रा एक्सचेंज ( Crypto-currency exchanges )

उत्तराखंड मल्टी-करोड़ साइबर घोटाला STF स्कैनर के तहत क्रिप्टो-मुद्रा एक्सचेंज ( Crypto-currency exchanges ) देहरादून :-   स्पेशल टास्क फोर्स ( Special Task Force ) STF  उत्तराखंड पुलिस ने भारत में चल रहे दो प्रसिद्ध क्रिप्टो-मुद्रा ( crypto-currency ) एक्सचेंजों को उनके द्वारा विदेशी मुद्रा नियमों के संभावित उल्लंघन के लिए नोटिस दिया है। यह कदम कुछ दिनों पहले उत्तराखंड पुलिस द्वारा 'पावर बैंक' जैसे मोबाइल एप्लिकेशन पर आकर्षक योजनाओं के माध्यम से किए गए 350 करोड़ रुपये के साइबर धोखाधड़ी का पर्दाफाश करने के बाद उठाया गया है। अब तक, STF ने भारतीय नागरिकों के निवेशित धन को क्रिप्टोकरेंसी ( cryptocurrency ) के माध्यम से विदेशों में स्थानांतरित करने के आरोप में मुखौटा कंपनियों के दो निदेशकों को गिरफ्तार किया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ( SSP ) STF अजय सिंह ने कहा, हमने CrPC की धारा 91 के तहत Wasir X And CoinDCX दोनों क्रिप्टो-मुद्रा एक्सचेंजों ( crypto-currency exchanges ) को संदिग्ध लेनदेन के संबंध में नोटिस दिया है और विवरण मांगा है जो आगे की जांच में मदद कर सकता ...

उत्तराखंड के राज्य चिह्न

उत्तराखंड के राज्य चिह्न उत्तराखंड राज्य के प्रतीक चिह्न में एक गोलाकार मुद्रा में तीन पर्वतों की एक श्रृंखला के ऊपर सम्राट अशोक की लाट को उकेरा गया है तथा उसके नीचे गंगा नदी की लहरों को दिखाया गया है। यह चिह्न राज्य के सभी कार्यालयों में प्रयुक्त किया जा रहा है। उत्तराखंड का राज्यपशु- कस्तूरी मृग कस्तूरी मृग ( मास्कस ल्यूगकोगास्टर ) को उत्तराखंड का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है।  उत्तराखण्ड में यह केदारनाथ, फूलों की घाटी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ जनपद के लगभग 15,000 फिट की ऊंचाई वाले जगलों में पाया जाता है। उत्तराखंड का राज्यपक्षी- मोनाल मोनाल ( लोफोफोरस इम्पीजेनस ) को उत्तराखंड का राज्यपक्षी घोषित किया गया हैं।  हिमाचल प्रदेश शासक ने भी इसी पक्षी को राज्यकीय पक्षी माना हैं। मोनाल पक्षी का वैज्ञानिक नाम 'फिवेण्ट' हैं। उत्तराखंड का राज्यवृक्ष- बुराँस उत्तराखण्ड का राज्य वृक्ष ' बुराँस ' ( रोडोडेण्ड्रॉन आरबोरियम ) है। यह मध्यम ऊँचाई का सदापर्णी वृक्ष है।  यह लगभग 1,500 से 3,500 मीटर ऊँची पहाड़ियों पर पाया जाता है। मार्च, अप्रैल में इस वृक्ष पर फूल खिलते हैं...

उत्तराखंड के प्राचीन काल का इतिहास

उत्तराखंड के प्राचीन काल का इतिहास नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के प्राचीन काल के इतिहास के बारे में बताएंगे। उत्तराखंड का इतिहास पौराणिक काल के बराबर पुराना हैं। उत्तराखंड का उल्लेख प्रारम्भिक हिन्दू ग्रंथों में भी मिलता हैं, जहाँ पर केदारखंड में ( वर्तमान गढ़वाल ) और मानसखंड में ( वर्तमान कुमाऊं ) का जिक्र किया गया हैं। वर्तमान में इसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता हैं। उत्तराखंड का प्राचीनकाल का इतिहास- पौराणिक लोककथाओं के अनुसार उत्तराखंड में पाण्डव यहाँ पर आये थे। और रामायण व महाभारत की रचना यहीं पर हुई थी। प्राचीन काल से यहाँ पर मनुष्य के निवास के प्रमाण मिलने के बावजूद भी उत्तराखंड के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती हैं। उत्तराखंड राज्य दो मंडलों में बटा हुआ हैं, लेकिन उत्तराखंड कत्यूरी, चन्द राजवंशों, गोरखाराज और अंग्रेजो के शासनाधीन रहा हैं। 2500 ई.पू. से 770 ई. तक कत्यूरी वंश, 770 ई . से 1790 ई. तक चन्द वंश, 1790 ई. से 1815 ई. तक गोरखा शासकों के और 1815 ई. से भारत के आज़ादी तक अंग्रेज शासकों के अधीन रहा। कत्यूरी राजवंश के बाद ...

उत्तराखंड राज्य की जलवायु

उत्तराखंड राज्य की जलवायु नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड राज्य की जलवायु के बारे में बताएंगे। जलवायु- किसी भी स्थान कि जलवायु वहां कि अक्षांशीय एवं देशांतरीय स्थिति, जल और स्थल का वितरण, समुद्र तल से दूरी, उँचाई, उच्चदाब, वायुदाब एवं पवनो का धरातल पर वितरण अनेक कारणों से होता है। उत्तराखंड राज्य की जलवायु- उत्तराखंड राज्य में जलवायु में बहुत ही अधिक विषमता देखने को मिलती है, आज हम आपको राज्य में तीन सामान्यत ऋतु के बारे मे बताएंगे - 1. ग्रीष्म ऋतू 2. वर्षा ऋतू 3. शीत ऋतू ग्रीष्म ऋतू को स्थानीय भाषा मे रूडी व खर्साउ, वर्षा को ऋतू को बसगाल व चौमास तथा शीत ऋतु को स्यून्द व शीतकला नामों से जाना जाता है। 1. ग्रीष्म ऋतू- भू-मध्य रेखा से सूर्य जब कर्क रेखा की ओर बढ़ता है तो ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है, उत्तराखंड राज्य में ग्रीष्म ऋतु का प्रभाव मार्च के मध्य से मध्य जून तक रहता है। ताप बढ़ने वह दाब घटने के कारण निचले भागों में तड़प  गर्जन के साथ छिटपुट वर्षा कभी तूफान आते हैं। मई से जून तक का तापमान सर्वाधिक रहता है, इस दौरान राज्य में सामान्यता उष्णकटिबंधीय द...

Uttarakhand ke upcl electricity ke bill online kaise check kare ?

Uttarakhand ke upcl electricity ke bill online kaise check kare ? नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के upcl electricity ke bill online kaise check karenge ye batayenge. उत्तराखंड राज्य के लोग उत्तराखंड के इलेक्ट्रिसिटी बिल को ऑनलाइन चेक करने के लिए उत्तराखंड  UPCL ( Uttarakhand Power Corporation Limited ) ki official website me check kar sakte hai. इसके लिए आपको step by step वेबसाइट में जाकर ये सब करना होगा जो हम बतायेंगे। Step 1 :-  सबसे पहले आप लोग अपने मोबाइल या डेस्कटॉप में गूगल सर्च ओपन कर लें। और उसके बाद उसमें UPCL की वेबसाइट :-  www.upcl.org   एंटर कर सर्च करले और उसके बाद। Step 2 :-  फिर आप लोग upcl की वेबसाइट में पहुँच जाएंगे। या फिर आप लोग डायरेक्ट इस लिंक के ऊपर क्लिक करके पहुँच सकते हैैं:-  https://www.upcl.org/   फिर उसके बाद आपको वेबसाइट में Electricity Bill Payment के ऊपर क्लिक करना हैं। Step 3 :-  उसके बाद आप इस तरह यंहा पर पहुँच जाएंगे- उसके बाद आप लोगों को यंहा अपना ...

उत्तराखंड की प्रमुख भाषाएं एवं बोलियां

उत्तराखंड की प्रमुख भाषाएं एवं बोलियां उत्तराखंड राज्य को दो क्षेत्र में बाँटा गया है, कुमाऊं तथा गढ़वाल मंडल एवं इन क्षेत्रो के आधार पर यहाँ पर दो प्रमुख भाषाएं है- 1. कुमाऊँनी बोली ( भाषा ) 2. गढ़वाली बोली ( भाषा) 1. कुमाऊँनी बोली ( भाषा )- उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र के उत्तरी तथा दक्षिणी सीमांत को छोड़कर शेष भू भाग की भाषा कुमाऊँनी है। इस भाषा के मूल रूप के संबंध में विद्वानों के अलग अलग दृष्टिकोण सामने आते है। 1. कुमाऊंनी भाषा का विकास दरद ( Dard ) , खस ( Khas ) , पैशाची ( Paishachi ) व प्राकृत ( Prakrti ) बोलियों से हुआ है।  2. हिंदी की ही भांति कुमाऊंनी भाषा का विकास भी शौरसेनी ( Shauraseni ) , अपभ्रंश ( Apabhramsa ) भाषा से हुआ है।  कुमाऊँनी भाषा को चार वर्गों में तथा उसकी 12 प्रमुख बोलियां निर्धारित की गई है, जो इस प्रकार है- पूर्वी कुमाऊँनी वर्ग- 1. कुमैया :-  यह नैनीताल से लगे हुए काली कुमाऊं क्षेत्र में बोली जाती है।  2. सौर्याली : -   यह सौर क्षेत्र में बोली जाती है। इसके अलावा इसे दक्षिण जोहार और पूर्वी गंगोली क्षेत्...

उत्तराखंड पृथक राज्य हेतु आंदोलन

उत्तराखंड पृथक राज्य हेतु आंदोलन नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड पृथक राज्य हेतु आंदोलन के बारे में बताएंगे। ★ उत्तराखंड को 5-6 मई 1938 ई० को श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में इस क्षेत्र को पृथक राज्य बनाने सम्बंधित मांग उठाई गयी थी।  ★ इस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू कर रहे थे। 1938 ई० में श्री देव सुमन ने पृथक राज्य की मांग हेतु दिल्ली में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की बाद में इस संगठन का नाम हिमालय सेवा संगठन हो गया था।  ★ 1946 में हल्द्वानी में कांग्रेस सम्मेलन हुआ जिसमें अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने गढ़वाल व कुमाऊँ को अलग क्षेत्रीय भाग बनाने की मांग उठाई गयी व बद्रीदत्त पांडे द्वारा उत्तरांचल के पर्वतीय भूभाग को विशेष वर्ग में रखने की मांग उठाई गयी।  ★ वर्ष 1950 ई० में उत्तराखंड एवं हिमाचल को एक पृथक हिमालयी राज्य बनाने के लिये पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन बनाया गया। ★ 1955 में फजल अली आयोग ने उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन हेतु पृथक क्षेत्र बनाने की मांग की। 1957 ई० में टिहरी नरेश मा...

उत्तराखंड की राजधानी कंहा हैं ? | Uttarakhand ki rajdhani kanha hai ?

उत्तराखंड की राजधानी कंहा हैं ? | Uttarakhand ki rajdhani kanha hai ? उत्तराखंड भारत का एक उत्तरीय राज्य है। उत्तराखंड भारत का 26 वां और हिमालयी क्षेत्र का 10 वां राज्य है। उत्तराखंड ( uttarakhand ) की राजधानी- उत्तराखंड की दो राजधानी हैं। 1.  शीतकालीन में राजधानी देहरादून  है। 2.  ग्रीष्मकालीन में राजधानी गैरसैंण है। गैरसैंण (Gairsain)-  उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक शहर है। यह समूचे उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में होने के कारण फिलहाल उत्तराखण्ड राज्य की ग्रीष्मकालीन अस्थाई राजधानी है। गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डलों के बाद इसे तीसरे मण्डल का दर्जा 05 मार्च , 2021 को दिया गया हैं। देहरादून (dehradun)- उत्तराखंड राज्य में दून घाटी के बीच स्थित देहरादून भारत के दर्शनीय स्थलों में से एक हैं। उतराखण्ड राज्य की राजधानी देहरादून पर्यटकों के मध्य बहुत ही लोकप्रिय हिल स्टेशन है, जो फैमली वेकेशन, फ्रेंड्स टूर और कपल्स के घूमने के लिए उत्तराखंड की परफेक्ट हॉलिडे डेस्टिनेशन है। उतराखण्ड राज्य में गढ़वाल हिमालय की एक सुंदर पृष्ठभूमि पर स्थित दे...